________________
१६६] त्रिषष्टि शन्नाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २.
-
-
देवियों के साथ तरह तरह के हावभाव दिखाते हुए च्च प्रकारक नाटक करने लगे। कई देवता श्राकाश उड़त थे, वे गाड़ पड़ीसे नाम होने थे। कीडा (वनस) मुर्गेकी तरह जनीन पर गिरते थे। कई देव अचार (नट) की तरह सुंदर चाल चलने थे। कई निहली नरहन्शी सिंहनाद करते थे। कई हाथियोंची वरह ऊँची याबान करते थे। कई यानंद चोड़ाकी तरह हिनहिनाने थे। कई गया पहियोंत्री श्रावाजकी तरह घर-घर शब्द कररहे थे। कई विद्यऋकी तरह हमी उत्पन्न करनेवाने वार नरहले शब्द बोलते थे। कई बंदर कूट-कूटकर नैले पेडोंना हिलाते हैं बैन, कूट-कूटकर नेत्यर्वत शिखरको हिलाते थे। वह अपने हाथों इस नन्ह जोर पृीपर पत्राई रहे थे मानों वे लड़ाइने प्रतिज्ञा करनेवान चोदा हैं। कई बार जीते हो इस तरह चिल्ला रहे थे। ई बाजेकी तह अपने पूरले हा गालोगो बना रहे थे। कई नाची अनोखा व्य बना कर उछलने थे। ईन्द्रियाँ गोल किती हुई रान करती है वैसे गोन जिरते हुए मधुर गायन और मनोहर नाच कर रहे थे।
ई आगची तट्ट जलद थे। कई घरजची तरह तयदे थे। कई नेवकी नन्ह गरजद थे। कई बिजलीची तरह अमरत थे और
पूरी नहले पेट भरे हुम विद्यार्थीची तरह दिखावा करत थे। प्रमुची प्राप्ति होनेवाले पानंदको श्रीन लिया सता है ? इन नह देवना जब त्रुशियाँ मना रहे थे तब, अच्युतेंद्रने प्रभु
क्षेप निया, पारिजातादि विचित हलो मलिलदिव नमु. की पूजा की और जिर. जरा पीछे हट मक्तिले नन्न हो, शिश्यत्री तरह भगवानकी वंदना की। ( -१)