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सागरचंद्रका वृत्तांत
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बना रहे हों । कई देवता जो प्रभुके ऊपर सफेद छत्र लगा रहे थे, ऐसे मालूम होते थे मानों वे आकाशरूपी सरोवरको कमलमय बना रहे हैं। कई, जो चंवर डुला रहे थे, ऐसे मालूम होते थे मानों वे प्रभुके दर्शनके लिए अपने आत्मीय (परिवार) लोगोंको बुला रहे हैं। कई देवता जो कमर कसे शस्त्र लिए प्रभुके चारों तरफ खड़े थे, प्रभुके अंगरक्षकोंसे मालूम होते थे। कई देवता जो सोने और मणियोंके पंखोंसे भगवानको हवा कर रहे थे, ऐसे मालूम होते थे मानों वे आकाशमें लहलहाती हुई विद्युल्लता (बिजलीरूपी वेल ) की लीला बता रहे हैं। कई देवता जो आनंदसे विचित्र प्रकाशके दिव्य पुष्पोंकी वर्षा कर रहे थे, दूसरे रंगाचार्य ( चितारे ) से मालूम होते थे। कई देव अत्यंत सुगंधित द्रव्योंका चूर्ण कर चारों दिशाओंमें घरसा रहे थे, वे अपने पापोंको निकाल-निकालकर फेंकते हुएसे जान पड़ते थे। कई देवता, जो सोना उछाल रहे थे, ऐसे जान पड़ते थे मानों उनको स्वामीने नियत किया है, इसलिए मेरुपर्वतकी ऋद्धि बढ़ानेका प्रयत्न कर रहे हैं। कई देवता, ऊँचे दरजेके रत्न बरसा रहे थे; वे रत्न आकाशसे उतरती हुई ताराओंकी कतारसे जान पड़ते थे। कई देवता अपने मीठे स्वरोंसे, गंधर्वोकी सेनाका भी तिरस्कार करनेवाले नए नए ग्रामों ( तार, मभ्य और पडज आदि स्वरों) और रागोंसे भगवानके गुण-गान करने लगे। कई देव मढ़े हुए घन (मोटे) और छिद्रवाले याजे बजाने लगे। कारण, भगवानकी भक्ति अनेक तरहसे की जाती है। कई देवता अपने चरणपातसे मेरुको कपाते हुए नृत्य कर रहे थे, मानों वे मेरुको भी नचा रहे हैं। कई देषता अपनी