________________
१५२ ] त्रियष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. मगर.
[पर्वके दिन सकडेही होते हैं, यानी पर्वकं दिनों में भीड़ होतीही है। इस तरह उन्मुकनाम इंदकं पीछे चलनवाले सौधर्म देवलोकके देवताओंका बड़ा शोर होने लगा। उस समय वह बड़ी पतामात्राला विमान श्राकाशसे उतरना हुया इस तरह शोमता था जैस समुद्र मध्य शिखरम उतरती हुई नाव शोमती है। मानों मेघमलने पंकिल (क्रीचड़वाला ) बने हुए स्वर्गको मुकाताहो वैसे,वृक्षासे बीच में चलनेवाले हाथियोंकी नरह नक्षत्रचक्रके बीच में होकर, यह विमान श्राकाशम चलना हुया वायुवेगसे असंख्य द्वीप-समुद्राको लाँधकर नंदीश्वर द्वीप पहुंचा। विद्वान पुरुष जैसे ग्रंथको संक्षेप करत है बैस, इंद्रन उस द्वीपक दक्षिण पर्वके मध्यभागमें स्थित, रतिकर पर्वतकं अपर विमानको छोटा बनाया। वहाँस भाग कई द्वीप और समुद्रांको लाँचकर, उस विमानको पहलेसे भी छोटा बनाता हुश्रा, इंद्र जंबूद्वीपके दक्षिण मरताम, श्रादिनीयकरक जन्ममुवन यापहचा। मूरज जैसे मेल पर्वतकी प्रदक्षिणा करता है वैसेही यहाँ दिने उस विमानसे प्रभु सुतिकागृहकी प्रदक्षिगा दी और फिर घरके कोनमें जैसे निधि-धन रखने है वैसेही ईशान कोनमें उस विमानको रग्या । (३६१-१०६)
फिर शकेंद्र, महामुनि जैसे मानसे उतरते हैं. वैसे विमानसे उतरा और प्रमुक पास श्राया । प्रभुको देवतही उस देवानगीन पहले प्रभुको प्रगाम किया; कारणा, स्वामीके दर्शन होतही प्रणाम करना, उन्हें पहली भेट देना है। फिर. माता सहित प्रमुको, प्रदक्षिणा देकर, फिरसे प्रणाम किया। कारण
......."मक्ती न पुनरुक्तता।"