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१३४ ] त्रियष्टि शलाका पुरुय-चरित्रः पर्व १. सर्ग २.
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१-पहले सपनमें उबल, पुष्ट कंधवाला, लंबी और. सीधी पूंछवाला, सोनकी घर-मालाबाला, और माना विद्युत सहित शरदऋतुका मेघ हो वैसा वृपम (बैल) देखा । (२१३)
२-दूसरे सपने में सफेद रंगवाला, क्रमसे ऊँचा, निरंतर मरते हुए मदकी नदीसे रमणीय और मानां चलता-फिरता कैलाश हो वैसा चार दाँतवाला हस्ति (हाथी) देखा । (२१४)
३-तीसरे सपनेमें पीली आँखोंवाला, लंबी जीभवाला, चपल केशर (कंधक बाल) वाला और मानों वीरोकी जयध्यता हो वैसा पूंछको उछालता हुआ (ऊँची करता हुश्रा) केसरी-सिंह देवा । (२१५.)
४-चौथे सपने में पद्म (कमल) में रहनेवाली, पद्मके समान आँखोवाली, दिग्गनों (दिशायांक हाथियों ) की गुंडासे उठाए गप पूर्ण कुंमांस (कलसोंसे) शोमती लक्ष्मीदेवी देखी 1 (२१६)
५-पाँचवें सपने में, तरह तरहके देववृक्षोंके फूलोंसे गूंथी हुई, सरल और धनुषधारीके अारोहण (धारण)किए हुए. धनुपके जैसी लंबी पुष्पमाला देवी । (२१७) ।
६-छठे सपने में मानों अपने मुखका प्रतिबिंब हो वैसा, श्रानंदका कारगारूप और कांति-समूहसे जिसने दिशाको प्रकाशित किया है ऐसा चंद्रमंटल देवा । (२१८)
७-सातवें सपनेम,रातके समय भी तत्काल दिनका भ्रम करानेवाला, सारे अंबरेको मिटानेवाला और फैलती हुई कांतिवाला सूरज देखा । (२१६)
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