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सागरचंद्रका वृत्तांत
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श्रीकांता-की आयुसे कुछकम संख्यात पूर्वकी हुई । (२०१-२०४)
काल करके मरुदेव द्वीपकुमार देवोंमें उत्पन्न हुआ और श्रीकांता भी तत्कालही मरकर नागकुमारमें उत्पन्न हुई। (२०५) .... मरुदेवकी मृत्युके बाद नाभिराजा युगलियोंका सातवाँ कुलकर हुआ । वह ऊपर बताई हुई तीनतरहकी नीतिके द्वाराही युग्मधर्मी मनुष्योंको सजा करने लगा । (२०६)
ऋषभदेवजीकी माताके चौदह स्वप्न
तीसरे आरेके चौरासीलाख पूर्व और नवासी पक्ष (तीनबरस और साढ़ेसात महीने) बाकी रहे तब आषाढ़ मासकी कृष्ण (काली) चतुर्दशी (चौदस) के दिन, उत्तराषाढा नक्षत्र में, चंद्रयोगके समय वजनाभका (धनसेठका) जीव तेतीससागरोपमकी आयु पूर्ण कर, सर्वार्थसिद्ध नामक विमानसे च्यवकर, नाभि कुलकरकी स्त्री मरुदेवीके गर्भमें इस तरह आया जिस तरह हंस मानसरोवरसे गंगाके तटपर आता है । (२०७-२१०)
प्रभु गर्भमें आए उस समय, क्षणभरके लिए प्राणीमात्रके दुःखका उच्छेद (अभाव) हुआ, इससे तीनोंलोकमें सुख और उद्योत-प्रकाश हुआ । (२११)
जिस रातको प्रभु च्यवकर माताके पेटमें आए उसी रातको अपने महलमें सोती हुई मरुदेवी माताने चौदह महास्वप्न देखे । (२१२)
१. मरुदेव और श्रीकांताकी श्रायुका प्रमाण दिया हुआ नहीं है।
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