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: सागरचंद्रका वृत्तांत
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. . .८-आठवें सपने में चपल कानोंसे जैसे हाथी शोभता है वैसा, घूघरियोंकी पंक्तिके भारवाला व चलायमान (हिलती हुई) पताकाओंसे सुशोभित महाध्वज देखा। (२२०) - - नर्वे सपनेमें,खिले हुए कमलोंसे जिसका मुख अचित किया हुआ है ऐसा, समुद्र मथनेसे निकले हुए सुधा (अमृत) के घड़े जैसा जलसे भरा हुआ सोनेका कलश देखा । (२२१)
१०-दसवें सपने में, मानों आदि अहंत (प्रथम तीर्थंकर) की स्तुति करनेको अनेक मुख हों ऐसे और भँवरे जिनपर गूंज रहे हैं ऐसे अनेक कमलोंसे शोभता महान पद्माकर (कमलोंका सरोवर) देखा । (२२२) . ... ११-ग्यारहवें सपनेमें. पृथ्वीपर फैले हुए, शरदऋतुके मेघकी लीलाको चुरानेवाला और ऊँची तरंगोंके समूहसे चिसको आनंदित करनेवाला क्षीरनिधि (समुद्र) देखा । (२२३) ।
. १२-बारहवें सपने में, मानों भगवान देवशरीरसे उसमें रहे थे इससे, पूर्वस्नेहके कारण आया हो वैसा बहुत कांतिवाला विमान देखा । (२२४)
१३-तेरहवें सपने में, मानों किसी कारणसे ताराओंका • समूह जमा हुआ हो वैसा और एकत्र हुई निर्मल कांतिके समूह जैसा आकाशस्थित रत्नपुंज देखा । (२२५) ..
१४-चौदहवें सपनेमें तीनलोकमें फैले हुए तेजस्वी पदाथों के पिंडभूत (इकट्ठे हुए) तेजके जैसा प्रकाशमान निर्धूम अग्नि मुखमें प्रवेश करते देखी। (२२६)
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