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सागरचंद्रका वृत्तांत ...
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मिठास और कल्पवृक्षोंकी महिमा क्रमशः कम होती जाती है। (१३२-१३३ )
चौथा आरा पहलेके प्रभावसे-कल्पवृक्षोंसे, पृथ्वीके स्वादसे और जलकी मधुरतासे-रहित होता है। उसमें मनुष्य एक कोटि पूर्वके आयुवाले और पाँचसौ धनुष ऊँचे शरीरवाले होते हैं।
पाँचवें आरेमें मनुष्य सौ वर्षकी आयुवाले, और सात हाथ ऊँचे शरीरवाले होते हैं।
छठे आरेमें मनुष्य केवल सोलह वर्षकी आयुवाले और सात हाथ ऊँचे शरीरवाले होते हैं। - एकांत दुखमा नामक आरेसे आरंभ होनेवाले कालमें इसी तरह पश्चानुपूर्विसे-अवसर्पिणीसे उल्टी तरहसे छः आरोंमें मनुष्योंकी स्थिति जाननी चाहिए ।(१३४--१३६)
सागरचंद्र और प्रियदर्शना तीसरे आरेके अंतमें उत्पन्न हुए इसलिए वे नौसौ धनुषके शरीरवाले और पल्योपमके दसर्वे हिस्से की आयुवाले युगलिया हुए। उनका शरीर वज्वऋषभनाराचसंहननवाला और समचतुरस्त्रसंस्थानवाला था। मेघमालासे जैसे मेरुपर्वत शोभता है वैसेही जात्यसुवर्णकी ( खरे, सौटंचके सोनेकी) कांतिवाला वह युग्मधर्मी ( सागरचंद्रका जीव) अपनी प्रियंगु ( राईके ) वर्णवाली स्त्रीसे शोभता था।
(१३७-१३६) अशोकदत्त भी पूर्वजन्मके किए हुए कपटसे उसी जगह सफेद रंग और चार दाँतवाला देवह स्तिके जैसा हाथी हुआ । एक. बार वह अपनी इच्छासे इधर-उधर फिर रहा था उस