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११२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पत्र ? सर्ग २.
उस समय कोई मंगलपाठक (चारण) दरबार में श्राया और शंत्रकी ध्वनिको मी यादेनवाली ऊंत्री आवा लगा, "हे राजा, अाज अापकं उद्यानमें उद्यानपालिका-मालिनकी तरह फ्लॉको सजानेवाली बसंतलक्ष्मीका आगमन हुआ है, इसलिए खिन्न हग फूलोंकी सुगंधमें दिशाओंके मुखको मुर्गवित करनवाल वाचको, श्राप इसी तरह मुशोमित क्रीलिए जिस तरह इंद्र नंदनयनको मुशोमिन करता है।"
(-१०) मंगलपाठककी बात सुनकर राजान द्वारपालको पात्रा दी, "नगरमें हिंढोरा पिटवा दिया जाब कि कन्त संवरे समी राजोद्यानमें (गन्य बाग) नाएँ। फिर उसने सागरचंद्रमें भी कहा, "तुम मी सवर बागमें श्राना। यह स्वामीकी बुशीका बिद्ध है। (११-१२)
राजाने अादा पाकर सागरचंद्र वुशी वुशी अपने घर गया और उसने अपने मित्र अशोकचकी रानाकी श्राना सुनाई। (१३)
दुसरं दिन राजा अपने परिवार सहित बागमें गया । शहरों लोग मी यहाँ गए। प्रजा गजाका अनुकरण करती है। सागरत्रंद्र भी अपने मित्र अशाऋदत्तकै साथ उद्यान में इसी तरह गया जिस तरह मलय पवननाथ वनंत ऋतु आती है। वहाँ कामदेव शासनमें समी लोग पल चुनकर, गीत, नाच वर्गगं क्रीडा करने लग जगह जगह इकटे होकर क्रीडा करने हुग नगरके लोग, (इम बागकी) राजा कामदेव पड़ावके साथ तुलना करने लगे। पद-पदपर गायन योर. वादनकी ध्वनि