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________________ दसवाँ भव-धनसेठ [१०१ - ३. आमोसहि लद्धि ( श्रामीपधि लब्धि )-जैसे अमृतके स्नानसे रोगियों के रोग चले जाते हैं वैसेही शरीरके स्पर्शसे सव रोग चले जाते हैं। (८४६) ४. सव्योसहि लद्धि ( सर्वोपधि लब्धि )-वारिशमें परसता हुआ और नदी वगैरामें बहता हुया जल, इस लन्धिवालेके शरीरसे स्पर्श करलेनेपर इसीतरह सभी रोगोंका नाश करताहे जैसे सूरजका तेज अंधकारका नाश करता है। गंधहस्तिके मदकी सुगंधसे जैसे हाधी भाग जाते हैं वैसेही उनके शरीरका स्पर्श करके आए हुए पवनसे विष आदि दोष दूर हो जाते हैं। अगर विप मिला हुया अन्नादिक पदार्थ उनके गुग्यमें या पात्र. में आजाता है तो वह भी अमृतकी तरह निर्विप हो जाना है। चाहर उतारनेके मंत्राक्षरोंकी तरह उनके वचनको याद करनेसे महाविपके कारण दुख उठाते हुए श्रादमियों के दुःख दूर होजाते है और (स्वातिका)जल सीपमें गिरनेसे जैसे मोती होता है वैसेही उनके नग्न, केश, दौत और उनके शरीरसे होनेवाली सभी चीजें (रामवाण ) दवाइयों होजाती है। (८४७-८५१) ५. अणुत्व शक्ति-धागेकी तगा (अपने शरीरको) मुश्के देदमंसे निकालनेकी शक्ति। ६. महत्व शक्ति-मसे हनना ऊँगा शरीर पनाना जा सकता है कि मेर पर्वत भी उनके घुटनों नर पांगे। ७. लघुन्य शक्ति- इससे शरीर इयाने मी दला किया जा सकता।
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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