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१०.] त्रिषष्टि शलाका पुश्य-चरित्रः पर्व १. सर्ग १.
वैसेही गुण भी मिलते हैं।] यद्यपि वे संनोपरूपी धन धनी थे तो भी नीर्थकरकी चरण सेवा करनेमें और दुष्कर तप करने में असंतुष्टही रहते थे। मासोपवासादि (एक महीनेकाउपवास आदि) तप करते हुए भी निरंतर तीर्थंकरकी वाणीरूपी अमृतका पान करनेसे वे ग्लानि नहीं पाते थे-थऋतं नहीं थे। फिर भगवान वनसेन स्वामी उत्तम शुक्लच्यानस निवाणपढ़को प्राप्त हुए। देवताओंने निर्वाणोत्सव किया। (३६-220)
अब धर्मक माइक समान बननाम मुनि अपने साथ व्रतधारण करनेवाल मुनियोंक साथ पृथ्वीपर विहार करने लगे। अंतरात्मासे जैसे पाँच इंद्रियाँ मनाथ होती है वैसेही बननाम स्वामीसे बाहु वगैरा चारों आई नथा मारथी, ये पाँचों मुनि, मनाथ हुए। चौड़की चाँदनीसे लेंस पर्वतॉम दवाइयाँ प्रकट होनी है, वैसेही योग प्रमावसे उनको खेलादि लब्धियाँ प्राप्त हुई। (८४१-८४३) लब्धियों का वर्णन
१. खेलोसहि लद्धि (पौषधि लब्धि)-कोढ़ीके शरीरपर थोड़ासा छूक लेकर मलने से कोढ़ नाश होता है और शरीर ऐसा सुवर्णवर्ण-सोनेके रंग सा हो जाता है जैसे कोटिरससे (सोना बनानेवान्न रससे ) ताम्रराशि स्वर्णमय हो जाती है। (८४४)
२. जल्लोसहि लद्धि (जल्लोपथि लन्धि इससे कानों, श्रांत्रों और शरीर का मैल गंगा सभी रोगांका नाश करनेवाला और कस्तूरीके समान सुगंधीदार होता है। (52)