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- अशुद्ध कर्मफलको तषो सिवाय दुःखोंकी सहनकर विद्यते समन्तभद्रका प्रवत्ति मुनिपरालिये ऊपरसे पुण्डेन्द्र पुण्ड्रेन इन्द्रपुर
शुद्ध कर्ममलको तृषो सिवाय, दु:खोंको सहनका जियते समन्तभद्रको प्रवृत्ति मुनिपरल्लिये ऊपर
पुण्डेन्दु
पुण्डरेन्दु
१.६
११७
१२५
(श्लोक ") में उनका पुण्ड्रेन्दु इनका समंतभद्रको उसके साधारणं लक्षणं वराहमिहिरो शककालमपास्य यवनपुरे
उसका पुण्ड्रेन्द्र इसका उसे समंतभद्रके साधारणं वाराहमिहिरो शककालममास्स र्यवनपुरे
१२०
१३५
११
१४.
मेचकाः ॥३२॥ भिन्न स्वरूपसे कोशेग्रंथों में परिचय १ टीकांश:
मेचकः ॥३९॥ मिल है स्वस्वरूपसे कोशग्रंथों में इस पृष्ठकी नं. परिचय (१ की टिप्पणी टीकांशः...(१४० पृष्ठकी
टिप्पणीका एक अंश है।
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