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स्वामी समन्तभद्रका शुद्धि-पत्र ।
अशुद्ध जोगुणादि प्रत्ययको जो ठीक होनेपर गुणादि-प्रत्ययको उत्वलिका
उत्कलिका
किया है नामा
नाम्ना
सुद
भवाद यही युक्त्यनुशासन
भयात् प्रायः यही स्वयंभूस्तोत्र
हुमा हो
.
X
कविनूतन मतिव्युत्पत्ति निषयात्मक सरस्वति श्वणींचकार साधन कलिकालमें आचार्यस्य उत्तीर्ण अनेक जिनैकगुणसंस्तुति अलंघ्यवीर्य गरल विष ददातीति
x (दूसरा फुटनोट पहले * छपना चाहिये था।) कवितन मतियुत्पत्ति निधायक सरस्वती वर्णाचकार कोई साधन कलिकाल ...आचार्यस्स
उत्कीर्ण
उनके जिनेन्द्रगुणसंस्तुति अलंघ्यवीर्या गरल (विष ददतीति श्री पुण्यारपचम्पू
भी
पुण्यस्रवचम्पू