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पंकि
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अशुद्ध जैनेन्दसंज्ञ शिलालेखमें गृखपिच्छः सं. ९४ दोनों
जैनेन्द्रसंज्ञ शिलालेखोंमें गृधपिच्छः सं० ४९ उन दोनों
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पोगे
मिथ्या
वह मिथ्या कौण्डकुन्दान्वय कोण्डकुन्दान्वय अभयदि
अमायणदि उल्लेख
उल्लेख भी पवयणभक्ति पवयणभत्ति १३३
१२३ भद्रबाहुस्स . भावाहुस्स १७ से.
१७ से श्रुतावतार इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार
योगे १९४
उदपिसिदर उदयिसिदर भद्रबाहुका भद्रबाहु द्वितीयका नं. ३५०
नं.३५ २२०
प्रस्तावना प्रकरण प्रस्ताव या प्रकरण २३२
श्रीमत्स्वामीसमंतभव श्रीमत्स्वामिसमंतमा सिद्धप्प
सिद्धय्य विरचयत। विरचयता माहात्म्यमतीन्दियं माहात्म्यमतीन्द्रियं
किमति किमिति नोट-विन्दु-विसर्ग और विराम विहादिकी कुछ दूसरी ऐसी साधारण बहुदियोंको यहाँ देनेकी जरूरत नहीं समझी गई जो पढ़ते समय सहब ही में माधम पर जाती हैं।
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