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स्वामी समन्तभद्र । ऐसी हालतमें जब कि विबुध श्रीधरके 'श्रुतावतार में उसकी संख्या ६८ हजार दी है। संभव है कि वह संख्या ८४ हजार हो-अंकोंके आगे पीछे लिखे जानेसे कहीं पर ४८ हजार लिखी गई हो और उसीके आधारपर ४८ हजारका गलत उल्लेख कर दिया गया हो-या ९६ हजार हो अथवा ६८ हजार वगैरह कुछ और ही हो; और यह भी संभव है कि उक्त वाक्यमें जो संख्या दी गई है वही ठीक न हो-वह किसी गलतीसे ८४ हजार या ४८ हजार आदिकी जगह लिखी गई हो । परन्तु इन सब बातोंके लिये विशेष अनुसंधान तथा खोजकी जरूरत है और तभी कोई निश्चित बात कही जा सकती है। हाँ, उक्त वाक्यमें दी हुई महाभाष्यकी संख्या और किसी एक श्रुतावतारमें दी हुई समन्तभद्रके सिद्धान्तागम भाष्यकी संख्या दोनों यदि सत्य साबित हों तो यह जरूर कहा जा सकता है कि समन्तभद्रका गंधहस्तिमहाभाष्य उनके सिद्धान्तागमभाष्य ( कर्मप्राभृत-टीका ) से भिन्न है, और वह उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रका भाष्य हो सकता है ।
(३) उमास्वातिके 'तत्त्वार्थसूत्र' पर 'राजवार्तिक' और 'श्लोकवार्तिक' नामके दो भाष्य उपलब्ध हैं जो क्रमश: अकलंकदेव तथा
१ अंकोंका आगे पीछे लिखा जाना कोई अस्वाभाविक नहीं है, वह कभी कभी जल्दी में हो जाया करता है। उदाहरणके लिये डा० सतीशचंद्रकी 'हिस्टरी आफ इंडियन लाजिक'को लीजिये, उसमें उमास्वातिकी आयुका उल्लेख करते हुए ८४ की जगह ४८ वर्ष, इसी अंकोंके आगे पीछेके कारण, लिखे गये हैं। अन्यथा, डाक्टर साहक्ने उमास्वातिका समय ईसवी सन् १ से ८५ तक दिया है। वे यदि इसे न देते तो वहाँ आयुके विषयमें और भी ज्यादा भ्रम होना संभव था।