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मुनि-जीवन और आपत्काल ।
महाराजने जिनदीक्षा धारण की थी। परंतु शिवकोटिको, 'कांची' अथवा ' नवतैलंग' देशका राजा न लिखकर ' वाराणसी' ( काशीबनारस ) का राजा प्रकट किया है, यह भेव है * ।
अब देखना चाहिये, इतिहाससे 'शिवकोटि' कहाँका राजा सिद्ध होता है । जहाँ तक हमने भारतके प्राचीन इतिहासका, जो अब तक संकलित हुआ है, परिशीलन किया है वह इस विषयमें मौन मालूम होता है--शिवकोटि नामके राजाको उससे कोई उपलब्धि नहीं होती-बनारसके तत्कालीन राजाओंका तो उससे प्रायः कुछ भी पता नहीं चलता। इतिहासकालके प्रारंभमें ही-ईसवी सन्से करीब ६०० वर्ष पहले-बनारस, या काशी, की छोटी रियासत 'कोशल ' राज्यमें मिला ली गई थी, और प्रकट रूपसे अपनी स्वाधीनताको खो चुकी थी। इसके बाद, ईसासे पहलेकी चौथी शताब्दी में, अजातशत्रुके द्वारा वह 'कोशल' राज्य भी 'मगध' राज्यमें शामिल कर लिया गया था, और उस वक्तसे उसका एक स्वतंत्र राज्यसताके तौर पर कोई उल्लेख नहीं मिलता + । संभवतः यही वजह है जो इस छोटीसी परतंत्र रियासतके राजाओं अथवा रईसोंका कोई विशेष हाल उपलब्ध नहीं होता । रही कांचीके राजाओं की बात, इतिहासमें सबसे
* यथा-वाराणसी ततः प्रातः कुलघोषैः समन्विताम् ।
योगिलिंगं तथा तत्र गृहीत्वा पर्यटन्पुरे ॥१९॥ स योगी लीलया तत्र शिवकोटिमहीभुजा।
कारितं शिवदेवोरुप्रासादं संविलोक्य च ॥२०॥ + V. A. Smith's Early History of India, III Edition, p. 30-35. विन्सेंट ए. स्मिथ साहबको अली हिस्टरी ऑफ इंडिया, तृतीयसंस्करण, पृ० ३०-३५।