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स्वामी समन्तभद्र।
पहले वहाँके राजा 'विष्णुगोप' (विष्णुगोप वर्मा ) का नाम मिलता है, जो धर्मसे वैष्णव था और जिसे ईसवी सन् ३५० के करीब ' समुद्रगुप्त' ने युद्धमें परास्त किया था। इसके बाद ईसवी सन् ४३७ में 'सिंहवर्मन् ' (बौद्ध) का, ५७५ में सिंहविष्णुका, ६०० से ६२५ तक महेन्द्रवर्मन्का, ६२५ से ६४५ तक नरसिंहवर्मन्का, ६५५ में परमेश्वरवर्मन्का, इसके बाद नरसिंहवर्मन द्वितीय ( राजसिंह ) का और ७४० में नन्दिवर्मन्का नामोल्लेख मिलता है। ये सब राजा पल्लव वंशके थे और इनमें 'सिंह. विष्णु' से लेकर पिछले सभी राजाओंका राज्यक्रम ठीक पाया जाता है। परंतु सिंहविष्णुसे पहलेके राजाओंकी क्रमशः नामावली और उनका राज्यकाल नहीं मिलता, जिसकी इस अवसर पर-शिवकोटिका निश्चय करनेके लिये-खास जरूरत थी। इसके सिवाय विसेंट स्मिथ साहबने, अपनी ' अर्ली हिस्टरी आफ इंडिया' (पृ० २७५२७६ ) में यह भी सूचित किया है कि ईसवी सन् २२० या २३०
१ शक सं० ३८० (ई. स. ४५८ ) में भी 'सिंहवर्मन् ' कांचीका राजा पा और यह उसके राज्यका २२ वाँ वर्ष था, ऐसा 'लोकविभाग' नामक दिगम्बर जैनग्रंथसे मालूम होता है।
२ कांचीका एक पल्लवराजा 'शिवस्कंद वर्मा' भी था, जिसकी ओरसे 'मायिदावोलु' का दानपत्र लिखा गया है, ऐसा मद्रासके प्रो. ए. चक्रवर्ती 'पंचास्तिकाय' की अपनी अंग्रेजी प्रस्तावनामें सूचित करते हैं। आपकी सूचनाओंके अनुसार यह राजा ईसाकी १ ली शताब्दी के करीब (विष्णुगोपसे भी पहले ) हुआ जान पड़ता है।
३ देखो, विसेंट ए. स्मिथ साहबका 'भारतका प्राचीन इतिहास' ( Early History of India ), तृतीय संस्करण, पृ० ४७१ से ४७६ ।