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________________ आगम के अनमोल रत्न चर्चा हुई । अपने से अनेक पूर्व पुरुषों, राजा महाराजाओं के त्याग, संयम विषयक चर्चा भी हुई। अन्त में एक दूसरे की चर्चा से दोनों राजर्षि बड़े प्रसन्न हुए। दोनों ने सिद्धि प्राप्त कर जीवन को सफल बनाया । ये दोनों मुनि महावीर के शासन काल में हुए थे । मृगापुत्र सुग्रीव नाम का रमणीय नगर था। वहाँ बलभद्र नाम के प्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम 'मृगा' था। उनको एक पुत्र था। उसका नाम मृगापुत्र था। वह युवराज था। एकबार मृगापुत्र प्रासाद के गवाक्ष से नगर के चतुष्पथ त्रिपथ और बहुपयों को कुतुहल से देख रहा था कि उसकी दृष्टि एक संयमशील साधु पर पड़ी। उसे देखकर मृगापुत्र को ध्यान आया कि उसने उसे कहीं देखा है। विचार करते करते उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुमा-'मे देवलोक से च्युत होकर मनुष्य भव में आ गया हूँ ऐसा संज्ञिज्ञान हो जाने पर मृगापुत्र पूर्वजन्म का स्मरण करने लगा और फिर उसे पूर्वकृत संयम का स्मरण हुआ । अतः उसने अपने पिता के पास जाकर दीक्षित होने की अनुमति मांगी ।' उसने अपने माता पिता को समझाते हुए कहा-हे माता पिताभो ! कौन किसका सगा सम्बन्धी और रिस्तेदार है ? ये सभी संयोग क्षणभंगुर हैं। यहाँ तक कि यह शरीर भी अपना नहीं है फिर दूसरे पदार्थ तो अपने हो ही कैसे सकते हैं ? काम भोग किंपाक फल के सदृश है। यदि जीव इन्हें नहीं छोड़ता तो ये कामभोग स्वयं इसे छोड़ देंगे। जब छोड़ना निश्चित है तो फिर इन्हें स्वेच्छापूर्वक क्यों न छोड़ दिया जाय । स्वेच्छा से छोड़े हुए कामभोग दुःखप्रद नहीं होते। इस प्रकार माता पिता को समझा कर और उनकी अनुमति प्राप्त कर मृगापुत्र दीक्षित हो गया। यथावत् संयम का पालन कर अन्त में मोक्ष में गया।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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