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________________ ८४ ] कविवर वृन्दावन विरचित अनेकांतरूप जिनराजको शबद ब्रह्म, होउ जयवंत जामें सांचो शिवपंथ है । अनादिकी मोह-गांठि भेदके किनोर करै, आतमस्वरूप जहाँ पावै भ्रम मंथ है ॥ शुद्ध उपयोग पर्म धर्म जामें लाभ होत, छूट जाते सर्व कर्म बंधनको कंथ है । वृन्दावन वंदत मुनिंद कुन्दकुन्दजूको, से शिव होत प्रवचनसार ग्रंथ है ॥ ६३॥ दोहा। वंदों श्री जिनराजपद, शुद्ध चिदानन्दकन्द । ज्ञानतत्त्व अधिकार ग्रह, पूरन भयो अमंद ॥ ६४ ॥ इति श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यकृत परमागम श्री प्रवचनसारजीकी वृन्दावनअग्रवाल गोइलगोत्री काशीवासिकृत भाषामें तीसरा ज्ञानतत्त्व अधिकार संपूर्ण भया ।। . 'संवत् १९०५ कार्तिक शुक्ला द्वादशी बुधवासरे वृन्दावनने लिखी, प्रथम प्रति है, सो जयवंती वरतौ । श्रीरस्तु। १. दूसरी प्रतिमें भी इस प्रकार लिखा है।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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