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________________ प्रवचनसार [७९ (१९) गाथा-८७ जिनागममें पदार्थोंकी व्यवस्था । . मनहरण। सर्व दर्वमाहिं गुन परजाय राजत हैं, ___ तहां गुन सदा संग वसत अनंत है । क्रमकरि वर्तत कहावै परजाय सोई, इन तिनहूको नाम अरथ अनंत है । तामें गुन पर्जको जो सरव अधारभूत, ___ताहीको दरव नाम भापी भगवंत है ।। येही तीनों भेदरूप आतमा विलोको वृन्द, 'जैसे कुन्दकुन्दजीने भाषी विरतंत है ॥ ४२ ॥ द्रव्य गुन पर्जको कहावत अरथ नाम, ___ तहाँ गुन पर्ज करै द्रव्यमें गमन है ॥ तथा द्रव्य निज गुनपर्नमें गमन करे, ऐसे अर्थ' नाम इन तीनोंको अमन है ॥ जैसे हेम निज गुंन पर्नमें रमन कर, ___ गुन परजाय करें हेममें रमन है । ऐसो मेदाभेद निजआतममें जानो वृन्द, स्यादवाद सिद्धांतमें दोषको दमन है ॥ ४३ ।। दोहा। यातें जिन सिद्धांतको, करो भले अभ्यास । मिटै मोहमल मूलतें, होय शुद्ध परकास ॥ ४४ ॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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