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कविवर वृन्दावन विरचित
(१७) गाथा-८५ उनके चिन्ह यह हैं--पहिचानकर
नष्ट करने योग्य ।
द्रु मिला। अजथारथरूप पदारथको, गहिकै निहचे सरधा करिवो । है पशुमानुषमें ममता करिकै, अपने मनमें फरुना घरियो । है पुनि भोगवि मह इष्ट-अनिष्ट, विभावप्रसंगनिको भरियो । हैं यह लच्छन मोहको जानि भले, मिल्यौ जोग है इन्हें हरिवो ॥३९॥
दोहा । तीन चिह्न यह मोहके, सुगुरु दई दरसाय । 'वृन्दावन ' अव चूक मति, जड़तें इन्हें खपाय ॥ ४० ॥ (१८) गाथा-८६ मोहक्षयका अन्य उपाय ।
मनहरण । परतच्छ आदिक प्रमानरूप ज्ञानकरि,
सरवज्ञकथित जो आगमनै जाने है । सत्यारथरूप सर्व पदारथ 'वृन्दावन',
ताको सरधान ज्ञान हिरदैमें आने है ॥ नेमकरि ताको मोह संचित खिपत जात, ___जाको भेद विपरीत अज्ञान विधान है। तातै मोह शुत्रुके विनासिवेको भलीभांति, __आगम अभ्यासिवो ही 'जोगता वखानै है ॥ ४१ ॥
१. योग्यता ।