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________________ ७८ ] कविवर वृन्दावन विरचित (१७) गाथा-८५ उनके चिन्ह यह हैं--पहिचानकर नष्ट करने योग्य । द्रु मिला। अजथारथरूप पदारथको, गहिकै निहचे सरधा करिवो । है पशुमानुषमें ममता करिकै, अपने मनमें फरुना घरियो । है पुनि भोगवि मह इष्ट-अनिष्ट, विभावप्रसंगनिको भरियो । हैं यह लच्छन मोहको जानि भले, मिल्यौ जोग है इन्हें हरिवो ॥३९॥ दोहा । तीन चिह्न यह मोहके, सुगुरु दई दरसाय । 'वृन्दावन ' अव चूक मति, जड़तें इन्हें खपाय ॥ ४० ॥ (१८) गाथा-८६ मोहक्षयका अन्य उपाय । मनहरण । परतच्छ आदिक प्रमानरूप ज्ञानकरि, सरवज्ञकथित जो आगमनै जाने है । सत्यारथरूप सर्व पदारथ 'वृन्दावन', ताको सरधान ज्ञान हिरदैमें आने है ॥ नेमकरि ताको मोह संचित खिपत जात, ___जाको भेद विपरीत अज्ञान विधान है। तातै मोह शुत्रुके विनासिवेको भलीभांति, __आगम अभ्यासिवो ही 'जोगता वखानै है ॥ ४१ ॥ १. योग्यता ।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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