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________________ प्रवचनसार [२१ ४५॥ (१३) शुभ-अशुभ वृत्तिका तिरस्कार और शुद्धोपयोगका सन्मान मनहरण । शुद्ध उपयोग सिद्ध भयो हैं प्रसिद्ध जिन्हें । एसो सिद्ध अरहंतनके गाययतु है ।। आतम सुभावतै उपजो साहजिक सुख । सवतें अधिक अनाकुल पाइयतु है । अक्ष पक्ष विलक्ष विषसों रहित स्वच्छ । उपमाकी गच्छसों अलक्ष ध्याहयतु है ।। .. निरावाध हैं अनन्त एकरस रहैं संत । ऐसे शिवकंतकी शरन जाइयतु है ॥ ४५ ॥ (१४) - : शुद्धोपयोग परिणतिका स्वरूप- . . शुद्धउपयोग जुक्त जति जे विराजत हैं । सुनो तासु लच्छन विचच्छन बुधारसी ॥ भलीभांति जानत यथारथ · पदारथको । तथा श्रुतसिंधु मथि धारत सुधारसी ॥ . संजमसों पंडित तपोनिधान पंडित हैं। राग-दोष खंडिके बिहंडत. मुधारसी ।। जाके सुख-दुखमें न हर्ष-विषाद चन्द । सोई पर्म धर्म धार धीर मो उधारसी।।। ४६ । ।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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