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________________ २० ], कविवर वृन्दावन विरचित दोहा । .. ताते शुद्धपयोगके, जे सम्मुख हैं जीव । तिनको शुभ चारित्रमहँ, रमनो नाहिं सदीव ॥ ३८ ॥ (१४) अशुभ परिणामोंका फल माधवी। अशुभोदयसे यह आतमराम, अनंत कलेश निरंतर पायो । कुमनुण्य तथा तिरजंचनिमें, बहुधा नरकानलमें पचि आयो । नहिं पार मिल्यो परिवर्तनको, इहि भांति अनादि कुकाल गमायो । ६ अब आतम धर्म गहो सुखकन्द, जिनिंद जथा भवि वृन्द बतायो ॥३९॥ दोहा । महा दुःखको बीज है, अशुभरूप परिणाम । याके.. उदय अनन्त दुख भुगते आतमराम ॥ ४० ॥ दारिद दुखनर नीचपद, इत्यादिक फल देत् । नारकगति तिरजंचगति, याको सहज निकेत ॥ ४१ ॥ तातै तजिये सर्वथां, अव्रत विषय-कषाय । .. याके उदय न बनि सकत, एको धर्म उपाय ॥ ४२ ॥ शुभ परिनामनके विय, है विवहारिक धर्म । दया दान पूजादि बहु, तप संयम शुभकर्म ॥ ४३ ॥ ताहि कथंचित धारिये, लखिये आतमरूप । शिवमगको सहकार यह, यों भाखी जिनभूप ॥ ४४ ॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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