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प्रवचनसार
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तैसें पुदगल कर्म वाहिज निमित्त जानो, ___ बंध्यौ जीव निडचे अशुद्धता-मरोरसों ॥७६ । (३०) गाथा-१७५ भाववन्धका स्वरूप ।
माधवी। उपयोगसरूप चिदातम सो, इन इन्द्रिनिकी सतसंगति पाई । । बहु भांतिके इष्ट अनिष्ट विपैं, तिनको तित जोग मिले जब आई ॥ हूँ तब राग रु दोष विमोह विभावनि, -सों तिनमें प्रनवै लपटाई । है तिनही करि फेरि वधै तहँ आपु, यों भाविकबंधकी रीति बताई ||७७|| (३१) गाथा-१७६ भाववन्धकी युक्ति और द्रव्यवन्ध ।
मनहरण । रागादि विभावनिमें जौन भावकरि जीव,
देखे जाने इन्द्रिनिके विषय जे आये हैं । ताही भावनिसों तामें तदाकार होय रमै,
तासों फेरी बँधै यही भावबंध भाये हैं । सोई भावबंध मानों चीकन रुखाई भयो,
ताहीके निमित्त सेती दर्वबंध गाये हैं । जामें भाठ कर्मरूप कारमानवर्गना है,
ऐसे सर्वज्ञ भनि बुन्दको बताये हैं ||७८॥ (३२) गाथा-१७७ बन्धके तीन प्रकार । पुवबंध पुग्गलसों फरस विभेद करि,
नयो कर्मवर्गनाके पिंडको गथन है ।