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कविवर वृन्दावन विरचित
जीवके अशुद्ध उपयोग राग आदिकरि,
होत मोह रागादि विभावको नथन है ॥ दोऊको परस्पर संजोग एक थान सोई, ___जीव पुग्गलातमके बंधको कथन है । ऐसे तीन बंधभेद वेदमें निवेद वृन्द,
भेदज्ञानीजनित सिद्धांतको मथन है ॥७९॥ .. (३३) गाथा-१७८ द्रव्यबंधके हेतु भाववन्ध । ' असंख्यात प्रदेश प्रमान यह आतमा सो,
ताके परदेश विप से उर आनिये । पुग्गलीक कारमान वर्गनाको पिंड आय,
करत प्रवेश जथाजोग सग्धानिये ॥ फेरि एक छेत्र अवगाहकरि बंधत है,
थिति परमान संग हैं ते सुजानिये । देय निज रस खि! जाहिं पुनि आपुहिमों, ___ ऐसो भेद भर्म छेद भव्य वृन्द मानिये ॥८०॥
दोहा । कायवचनमन जोगकरि, जो आतम पन्देश । कंपरूप होवें तहां, जोग वध कहि तेस ॥ ८१ ।। तासु निमित्ततें आवही; करमवरगना खंध । सो ईर्यापथ नाम कहि, प्रकृति प्रदेश सुबंध ॥ ८२ ॥ रागविरोध विमोहके, जैसे भाव रहाहि । ताहिके अनुसारतें, थिति अनुभाग बघाहिं ॥ ८३ ॥