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प्रवचनसार
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धूलि राख रेतकी रुखाईमें विभेद जैसे,
तैसे दोनों भावमें अनंत भेद भास है ॥३७॥ (२०) गाथा-१६५ स्निग्धत्व, रूक्षत्वसे पिंडता कारण ।
मनहरण । पुग्गलकी अनू चीकनाई वा रुखाईरूप,
आपने सुभाव परिनाम होय 'परनी । अंशनिकी संख्या तामें सम वा विषम होय,
दोय अंश बाढ़हीसों बंधजोग वरनी ॥ एक अंश घटे बढ़े बँषत कदापि नाहि,
ऐसो नेम निहचे प्रतीति उर धरनी । पीकन रुखाई अनुबंध हू बधत ऐसे, . आगमप्रमानत प्रमान वन्द करनी ॥३८॥
दोहा । दोय चार पट आठ दश, इत्यादिक सम जान । तीन पांच पुनि सात नव, यह क्रम विषम बखान ॥३९॥ चीकनताईकी अनू, सम अंशनि परमान । दोय अधिक होतें बंधे, यह प्रतीत उर आन ॥४०॥
रुच्छ भावकी जे अनू, . ते विपमंश प्रधान । दोय अधिकतें बंधत हैं, ऐसे लखो सयान. ॥११॥ अथवा . चीकन रूक्षको, बंध परस्पर होय । दोय अंशकी अधिकता, जोग मिलै जब. सोय ॥४२॥
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१. भम्म । २. परिणमन किया, परिनमी । ३. रूक्ष ।