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________________ प्रवचनसार [ १४९ धूलि राख रेतकी रुखाईमें विभेद जैसे, तैसे दोनों भावमें अनंत भेद भास है ॥३७॥ (२०) गाथा-१६५ स्निग्धत्व, रूक्षत्वसे पिंडता कारण । मनहरण । पुग्गलकी अनू चीकनाई वा रुखाईरूप, आपने सुभाव परिनाम होय 'परनी । अंशनिकी संख्या तामें सम वा विषम होय, दोय अंश बाढ़हीसों बंधजोग वरनी ॥ एक अंश घटे बढ़े बँषत कदापि नाहि, ऐसो नेम निहचे प्रतीति उर धरनी । पीकन रुखाई अनुबंध हू बधत ऐसे, . आगमप्रमानत प्रमान वन्द करनी ॥३८॥ दोहा । दोय चार पट आठ दश, इत्यादिक सम जान । तीन पांच पुनि सात नव, यह क्रम विषम बखान ॥३९॥ चीकनताईकी अनू, सम अंशनि परमान । दोय अधिक होतें बंधे, यह प्रतीत उर आन ॥४०॥ रुच्छ भावकी जे अनू, . ते विपमंश प्रधान । दोय अधिकतें बंधत हैं, ऐसे लखो सयान. ॥११॥ अथवा . चीकन रूक्षको, बंध परस्पर होय । दोय अंशकी अधिकता, जोग मिलै जब. सोय ॥४२॥ - - १. भम्म । २. परिणमन किया, परिनमी । ३. रूक्ष ।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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