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कविवर वृन्दावन विरचित
मतांतर । दोहा। केई मतवाले कहैं, प्रथम अमल थो जीव । माया जडसों मलिन है, चहुँगति भमत सदीव ।। १०६ ॥ प्रगट असंभव बात यह, शुद्ध अमल चिद्रूप । क्योंकरि बंध दशा लहै, परै केम भवकूप । १०७ ।। विमलभाव तब बंधको, कारन भयो प्रतच्छ । मोच्छ अमलता तब कहो, कैसे सधै विलच्छ ॥ १०८ ॥ गाथा-१२२ अव परमार्थसे आत्माके द्रव्य कर्मका
__ अकर्तृत्व । (३०)
मनहरण । परिनामरूप स्वयमेव आप आतमा है,
जातै परिनाम परिनामीमें न भेद है। सोई परिनामरूप क्रिया जीवमयी होत, ___ आपनी क्रियात तनमयता अछेद है ॥
जीवकी जो क्रिया ताको भावकर्म नाम कह्यौ, ___याको करतार जीव निहचै निवेद है ॥ तात दर्व करमको आतमा अकरता है । ___याको करतार पुदगल कर्म वेद है । १०९॥
प्रश्न-दोहा । भावकरम आतम करै, यह हम जानी ठीक । दरव करम अबको करै, यह संदेह अधीक ॥११० ॥
उत्तर-मनहरण । जैसे भाव कर्मको करैया जीव राजत है,
पुग्गल न ताको करै कभी यों पिछानियो ।