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[(चय) + (प्रोवचइयं)] =बढने वाला, क्षम वाला। विप्परिणामधम्म - परिणमन, स्वभाव । पासह = देखो। एवं इसको। स्पसंधि = देहसंगम को।
स्त्री 86 आवंती' केसावंती (प्रावंत-प्रावंती केसावंत-केयावती) 1/2 वि
लोगंसि (लोग) 7/1 परिगहावेतो (परिग्गहावंत-परिगहावंती) 1/2 वि से (त) 1/1 सवि अप्पं (अप्प) 2/1 वि वा (अ)=या बहुं (वह) 2/1 वि अणु (अणु) 2/1 वि धूलं (थूल) 2/1 वि चित्तमंतं (चित्तमंत) 2/1 वि अचित्तमंतं (अचित्तमंत) 2/1 वि एतेसु (एत) 7/2 चेव (घ) =ही परिग्गहावंती (परिग्गहावंत-परिग्गहावंती) 1/1 वि एतदेवेगेसि [(एतदेव)+ (एगेसिं)] एतदेव (अ)=इसलिए ही एगेनि' (एग) 6/2 महन्मयं (महन्भय) 1/1 भवति (भव) व 3/1 अक लोगवित्तं (लोग) -(वित्त) 2/1] च (अ)=ही णं (अ)=वाक्यालंकार उवेहाए (उवेह) संकृ एते (एत) 2/2 सवि संगे (संग) 2/2 अविजाणतो (अविजाण)
पंचमी अर्थक 'तो' प्रत्यय । 86 आवंती केमावंती=जितने । लोगंसिलोक में । परिग्गहावंती
परिग्रह-युक्त । से वह । अप्पं थोडी (को)। वा-या। बहुं बहुत (को)। अणु-छोटी (को)। पूलं = बड़ी (को)। चित्तमंतं = सजीव (को)। अचित्तमंतं निर्जीव (को)। एतेसु=इनमें ही। चेव =ही। परिगहावंती= ममता-युक्त । एतदेवेगेसि=[(एतदेव)+एगेति)] इसलिए ही, कई में। महन्भयं-महाभय । भवति उत्पन्न होता है ।
स्त्री 1. जावंत आवंत अवंती। 2. कभी कभी पष्ठी विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर किया
जाता है : (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 130 ]
[ आचारांग