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लोगवित्तं = लोक श्राचरण को । इन । संगे = आसक्तियों को । अविजाणतो
चही । उवेहाए = देखकर । एते : नहीं जानने से ।
87 से ( अ ) = वाक्य की शोभा सुतं (सुत) भूकृ 1 / 1 अनि च (प्र) = और मे (श्रम्ह ) 3 / 1 स अज्झत्यं ( अज्झत्थ ) 1/1. बंधपमोक्खो [ ( बंघ) - ( पमोक्ख ) 1 / 1] तुज्झऽज्झत्येव [ ( तुज्झ ) + (अज्झत्थ) + (एव) ] तुज्झ ( तुम्ह) 6 / 1 स. अज्झत्य (अज्झत्य) मूलशब्द 7 / 1. एव ( अ ) = ही.
87 से = वाक्य की शोभा । सुतं = सुना गया। मे मेरे द्वारा । च = श्रर । अज्झत्थं = श्रात्म-संबंधी । बंध पमोक्खो बंघ, मोक्ष । तुज्झऽज्झत्येव [ ( तुज्झ ) + (अज्झत्य) + (एव) ] तेरे, मन में, ही ।
88 समिया (समिया) 7 / 1 पवेदिते (पवेदित) भूकृ 1 / 1 अनि.
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धम्मे ( धम्म) 1 / 1 आरिएहि ( श्रारि) 3/2
88 समियाए = समता में । धम्मे = धर्म । आरिएहि = तीर्थंकरों द्वारा । पवेदिते = कहा गया ।
चयनिका ]
89 इमेण' (इम) 3/1 चेव ( अ ) = ही जुज्झाहि (जुज्झ ) विधि 2 / 1 अक कि ( कि) 1/1 से ते (तुम्ह) 4 / 1 स. जुज्भेण ( जुज्झ ) 3 / 1 वज्झतो ( अ ) = बाहर से जुद्धारिहं [ ( जुद्ध) + (अरिहं) ] [ ( जुद्ध ) - (अरिह) 1 / 1 वि] खलु ( प्र ) = निश्चय ही दुल्लभं (दुल्लभ) 1 / 1 वि 89 इमेण = इसके साथ । चेव ही । जुज्झाहि = युद्ध कर । किं = क्या लाभ ? ते = तुम्हारे लिए । जुज्भेण = युद्ध करने से । बज्झतो = वाहर से । जुद्धारिहं [( जुद्ध) + (अरिहं) ] युद्ध करने के, योग्य । खलु = निश्चय ही । दुल्लभं दुर्लभ |
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1. 'सह' के योग में तृतीया होती है ।
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