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इसका । तीतं = प्रतीत । तं = वह । आगमिस्सं = भविष्य । णातीतमट्ठ
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[(ण) + (प्रतीतं) + (अट्ठ ) ] = न, प्रतीत को, प्रयोजन को । य= तथा । श्रागमिस्सं = भविष्य को । अट्ठ = प्रयोजन को । णियच्छंति = देखते हैं । तथागता = वीतराग उ = इसके विपरीत । विद्युतकप्पे = सम्यक् स्पृष्ट आचरण के द्वारा । एतायुपस्सी [ ( एत ) + श्रणुपस्सी)] अव का, देखने वाला | रिगज्झोसइत्ता = कर्मो का नाश करने वाला ।
तुमं ( तुम्ह ) 1 / 1 स.
=
66 पुरिसा ( पुरिस ) 8 / 1 तुममेव [ (तुम) + (एव) ] एव ( 2 ) = ही तुमं (तुम्ह ) 6 / 1 स मित्तं ( मित्त) 1 / 1 कि (श्र) = क्यों बहिया ( अ ) = बाहर की ओर मित्तमिच्छसि [ ( मित्तं) + ( इच्छसि ) ] मित्तं ( मित्त) 2 / 1. इच्छसि ( इच्छ ) व 2 / 1 सक जं (ज) 2 / 1 सवि जाणेज्जा (जाण) विधि 2 / 1 सक उच्चालयित्त [ (उच्च) + ( चालयितं ) ] [ (उच्च) वि- (आलयित ) ] भूकृ 2 / 1 अनि ] तं (त) 2 / 1 सवि दूरालयितं [ (दूर) + आलयितं ) ] [ (दूर) वि- (आलयित) मूकृ 2 / 1 अनि ] दूरालइतं [(दूर) + (ग्रालइतं ) ] [ (दूर) वि - (ग्रालइत) भूकृ 2 / 1 अनि ]
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66 पुरिसा ! = हे मनुष्य ! तुममेव [ (तुमं ) + एव ) ] = तू, ही । तुमं = तेरा । मित्तं = मित्र । किं = क्यों । वहिया = बाहर की ओर । मित्तमिच्छसि [ ( मित्तं ) + ( इच्छसि ) ] = मित्र को तलाश करता है । जं = जिसे । जागेज्जा = जानो । उच्चालयितं [ (उच्च) + ( श्रालयितं ) ] = ऊंचे (में) जमा हुया ( को ) । तं = उसे । दूरालयितं = [ (दूर) + (प्रालयितं ) ] = दूरी पर, जमा हग्रा । दूरालइतं [ (दूर) + ( श्रालइतं ) ] = दूरी पर, जमा हुआ |
67 पुरिसा (पुरिस) 8 / 1 अत्ताणमेव ( ( प्रत्ताणं) + (एव) ] ग्रत्ताणं (प्रत्ताण ) 2 / 1. एव ( अ ) = ही श्रभिणिगिज्म ( श्रभिणिगिज्झ ) संकृ अनि एवं (अ) इस प्रकार दुक्खा ( दुक्ख ) 5 / 1 पमोक्खसि ( मोक्खसि ) भवि 2 / 1 कार्प
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