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67 पुरिसा! = हे मनुष्य ! अत्ताणमेव [ (अत्ताणं) + (एव)] = मन को, ही।
अभिणिगिज्झ= रोक कर । एवं = इस प्रकार। दुक्खा= दुःख से ।
पमोक्खसि= छूट जायेगा। 68 पुरिसा (पुरिस) 8/1 सच्चमेव [(सच्चं)+ (एव)] सच्चं (सच्च) 2/1.
एव (अ) = ही समभिजाणाहि (समभिजाण) विवि 2/1 सक सच्चस्स (सच्च) 6/1 आणाए (आणा) 7/1 से (त) 1/1 सवि उवहिए (उवट्ठि) 1/1 वि मेधावी (मेवावि) 1/1 वि मारं (मार) 2/1 तरति (तर) व 3/1 सक. सहिते (सहित) 1/1 वि धम्ममादाय [(धम्म) + (आदाय)] धम्म (धम्म) 2/1. आदाय (आदा) संकृ सेयं (सेय) 2/1 वि समणुपस्सति (समणुपस्स) व 3/1 सक दुक्खमत्ताए [(दुक्ख)-(मत्ता) 3/1] पुट्ठो (पुट्ठ) भूकृ 1/1 अनि णो (अ)= नहीं
झंझाए (झंझा) 7/1 68 पुरिसा! =हे मनुष्य ! सच्चमेव [(सच्चं) (एव)] = सत्य को, ही ।
समभिजाणाहि-निर्णय कर । सच्चस्स= सत्य की । आणाए= आज्ञा में । से=वह । उवट्ठिए = उपस्थित । मेघावी= मेधावी । मारं = मृत्यु को। तरति= जीत लेता है । सहिते-सुन्दर चित्तवाला । धम्ममादाय [(धम्म)+ (आदाय)] = धर्म को, ग्रहण करके । सेयं = श्रेष्ठतम को। समणुपस्सति = भली-भांति देखता है। सहिते = सुन्दर चित्तवाला। दुक्खमत्ताए = दुःख की मात्रा से । पुढो= ग्रस्त । णो=
नहीं । झंझाए = व्याकुलता में। 69 जे (ज) 1/1 सवि एगं (एग) 2/1 सवि जाणति (जाण) व 3/1 सक
से (त) 1/1 सवि सव्वं (सव्व) 2/1 वि सव्वतो (अ) = सव ओर से पमत्तस्स (पमत्त) 4/1 वि भयं (भय) 1/1 अप्पमत्तस्स (अप्पमत्त) 4/1 वि पत्थि (अ) = नहीं
एग (एग) मूल शब्द 2/1 रणामे (णाम) व 3/1 सक से (त) 1/1 सवि 118 ]
[ आचारांग