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नहीं होने के कारण । से = वह । ण= न । छिज्जति = छेदा जाता है । भिज्जति = भेदा जाता है । उज्झति = जलाया जाता है। हम्मति = मारा जाता है । कंचणं = थोड़ा सा । सव्वलोए = कहीं भी, लोक में ।
1 / 1 विकि ( कि)
=
65 अवरेण (वर) 3 / 1 पुव्वं (पुत्र) 2 / 1 विण ( अ ) = नहीं सरंति (सर) व 3 / 2 सक एगे (एग ) 1/2 सवि किमस्स [ ( किं) + (ग्रस्स)] कि (कि) 1 / 1 स. अस्स (इम) 6 / 1 स ( ) 2 तीतं (तीत) 1 / 1 स वाऽऽगमिस्सं ( (वा) + (आगमिस्सं ) ] वा (प्र) = और. ग्रागमिस्सं ( आगमिस्स ) 1 / 1 वि भासंति ( भास) व 3 / 2 सक इह (प्र) : यहाँ माणवा ( मारणव) 1 / 2 तु ( अ ) = किन्तु जमस्स [ ( जं) --- (ग्रस्स ) ] जं (ज) 1 / 1 सवि. अस्स (इम) 6 / 1 स तं (त) 1 / 1 सवि श्रागमिस्सं ( ग्रागमिस्स ) 1 / 1 वि णातीतमट्ठ [ (ण) + (प्रतीतं) + (श्रट्ट)] ण ( अ ) = नहीं. अतीतं ( प्रतीत ) 2 / 1 वि. श्रट्ठ (अट्ठ) 2 / 1 य (अ) = तथा नियच्छिन्ति ( नियच्छ) व 3 / 2 सक तथागता ( तयागत) 1 / 2 उ ( 2 ) = इसके विपरीत विद्युतकप्पे [ ( विधूत) वि- (कप्प ) 3 7/1] एताणुपस्सी [ ( एत) + (अणुपस्सी ) ] एत ( अ ) = अव. अणुपस्सी (अणुपरिस) 1 / 1 विणिज्भोसइत्ता ( णिज्झोसइत्तु ) 1 / 1 वि
65 अवरेण = भविष्य के ( साथ-साथ ) । पुव्वं = पूर्वगामी को 1 ण = नहीं । सरंति=लाते हैं । एगे = कुछ लोग । किमस्स = [ ( किं) + (ग्रस्स)] क्या, इसका । तीतं = अतीत को । कि = क्या ? वाऽऽगमिस्सं [ (वा) + (आगमिस्सं)] और, भविष्य । भासंति = कहते हैं । एगे = कुछ मनुष्य । इह 1 यहाँ । माणवा = मनुष्य । तु = किंतु । जमस्स [(जं) + (अस्स)] जो,
=
1. 'सह' के योग में तृतीया होती है ।
2. 'अ' का लोप (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-66)
3. कभी कभी तृतीया के स्थान पर सप्तमी होती है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-135)
116 ]
[ आचारांग