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2 / 1 ] णारी ( णाणि) 1 / 1 विणो ( अ ) = न पमादे ( पमाद) विधि 3 / 1 क कयाs (अ) कभी वि (अ) भी प्रातगुत्ते [ ( आत) - (गुत्त) 1/1 वि] सदा ( अ ) = मदा वीरे (वीर) 1 / 1 वि जातामाताए [ ( जाता ) -
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स्त्री
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मात → (माता) 4 / 1 वि] जावए (जाव) विधि 3 / 1 सक विरागं ( विराग ) 2 / 1 रूह' (रुव) 3 /2 गच्छेज्जा ( गच्छ ) विधि 3 / 1 सक महता ( महता ) 3 / 1 वि अनि खुड्डएहि ' ( खुड्डु ) 3 / 2 वि वा (प्र) = और आर्गात (ग्रागति) 2 / 1 गत (गति) 2 / 1 परिष्णाय ( परिण्णा) संकृ दोहि (दो) 3 / 2 वि वि (अ) = ही अंतहि (अंत) 3 / 2 प्रदित्समाणेह ( प्र - दिस्सारण) व कर्म 3/2 अनि से (त) 1 / 1 सवि ण ( अ ) = न. छिज्जति (हिज्जति) व कर्म 3 / 1 सक अनि भिज्जति (भिज्जति) व कर्म 3 / 1 सक अनि उज्झति (उज्झति ) व कर्म 3 / 1 सक अनि हम्मति (हम्मति ) व कर्म 3 / 1 सक ग्रनि कांचणं (प्र) = थोड़ा सा सव्वलोए [(सव्व) - (लो) 7/1]
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64 समयं = समता को । तत्यु वेहाए [ ( तत्य) + उवेहाए ) ] वहाँ, धारण करके । अप्पाणं = स्वयं को विप्पसादए = प्रसन्न करे । अणण्णपरमं = अद्वितीय, परम को परम के प्रति । रगारगी = ज्ञानी । णो=न । पमादे = प्रमाद करे | कयाइ= कमी | वि= भी। आतगुत्ते = ग्रात्मा से, संयुक्त | सदा = सदा । वीरे = वीर । जातामाताए = यात्रा के लिए। जावए = शरीर का प्रतिपालन करे । विरागं = विरक्ति को । स्वहि = रूपों से | गच्छेज्जा = करे । महता = बड़े से । खुडएहि = छोटे से । वा = और। आगत = आने को । गति = जाने को । परिण्णाय = जानकर । दोहि = दोनों द्वारा । वि= ही | अंतेहि = अन्तों द्वारा । श्रदिस्समार्णोह - समझा जाता हुआ
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1. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136)
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