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(त) 1/1 सवि से (त) 6/1. स अहिताए (अहित) 4/1 से (त) 4/1
स अबोहीए (अबोहि) 6/1 8. इमस्स चेव जीवियस्स= इस ही जीवन के लिए । परिवंदण-माणण-पूय
णाए=प्रशंसा, आदर तथा पूजा के लिए । जाती-मरण-मोयणाए =जन्म, के कारण, मरण. के कारण तथा मोक्ष के लिए । दुक्ख पडिघात हेर्ड (दुक्ख-पडिघात-हेड) = दुःखों को, दूर हटाने के लिए। से=वह । सयमेव (सयं+एव)= स्वयं ही। पुढविसत्यं = पृथ्वीकायिक-जीव-समूह को। समारंभति= हिंसा करता है । अण्णेहि दूसरों के द्वारा । वा-या। समारंभावेति = हिंसा करवाता है। अण्णे= दूसरों को। समारंभंते= हिंसा करते हुए । समणुजाणति =अनुमोदन करता है। तं = वह । से उसके। अहिताएअहित के लिए। से= उसके लिए।
अवोहीए अध्यात्महीन बने रहने का। 9. सूत्र 5 एवं 8 का व्याकरणिक विश्लेषण देखें। उदयसत्यं [(उदय)
(सत्थ) 2/1] अबोधीए (अवोधि) 6/1 9. सूत्र 8 के शब्दार्थ देखें। उदयसत्यं = जलकायिक जीव-समूह । समार
भति = हिंसा करता है। समारभावेति= हिंसा करवाता है। समारभते ____ =हिंसा करते हुए । अबोधीए = अध्यात्महीन बने रहने का । 10. सूत्र 5. एवं 8 का व्याकरणिक विश्लेषण देखें। अगणिसत्यं !(अगरिण)
-(सत्थ)2/1] समारभति (समारभ) व 3/1 सक समारभावेति आवे (समारभ-समारभावे) प्रेरक व 3/1. सक समारभमाणे (समारभ)
वक 2/2 अबोधीए (प्रबोधि)6/1 10. सूत्र 8 व 9 के शब्दार्थ देखें। अगणिसत्यं = अग्निकायिक जीव-समूह ।
समारभमाणे= हिंसा करते हुए। 11. सूत्र 5, 8 एवं 10 का व्याकरणिक विश्लेषण देखें। वरणस्सतिसत्थं
[(वरणस्सति)-(सत्थ) 2/1] 11. सूत्र 8 व 9 व 10 के शब्दार्थ देखें। वणस्सतिसत्यं = वनस्पतिकायिक
जीव-समूह । चयनिका ]
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