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________________ दुष्ट पुरुष निर्दोष वाणी को भी दूषण लगाते हैं। सब चमत्कार छुद्र चेष्टा थी। पवित्र हृदय वाले राम, सोता और लक्ष्मण देवो के समान अनुपम भोग-भोगते हुये उस नगरी में सुख से रहने लगे । पुण्यात्मा पुरुष जहा जहां जाते है वहां वहां पुण्य सामग्री उनके पीछे चली आती है। एक दिन कपिल ब्राह्मण लकड़ी लाने के लिए जंगल में गया। वहां पर अकस्मात उसको दृष्टि उस नगर पर पड़ी। उस शोभनीय नगर को दखकर उसका मुख आश्चर्य चकित हो गया। वह विचारने लगा - क्या यह स्वर्ग है अयवा वही मृगो से सेवित अटवी है । यह नगरी ऊंचे २ शिखरो की माला से शोभायमान तथा रत्नमयी पर्वतों के समान दीखने वाले भवनों से अकस्मात् ही सुशोभित हो रही है। यहा कमल आदि से आच्छादित जो यह मनोहर सरोवर दिखाई दे रहे हैं। वे पहले मैंने कभी नही देखे। यहां मनुष्यो के द्वारा सेवित सुरम्य उचान और बड़ी बड़ो ध्वजाओं युक्त मन्दिर दिखाई पड़ते है। इस नगर की निकटवर्ती भूमि, हाथियों, घोड़ों, गायों और भैसो से संकीर्ण तथा घन्टा आदि के शब्दों से पूर्ण है। क्या यह नगरी स्वर्ग से यहां अवतीर्ण हई है। अथवा किसी पुण्यात्मा के प्रभाव से पाताल से निकली है । क्या मैं ऐसा स्वप्न देख रहा हूं ? अथवा यह किसी की माया है या गन्धर्व का नगर है। या मै स्वयं पित्त से व्याकुलित हो गया हूं या मेरा निकट काल में मरण होने वाला है सो उसका चिह्न प्रकट हुमा है ? इस प्रकार विचार करता हुआ वह ब्राह्मण अत्यधिक विवाद को प्राप्त हुआ। उसी समय उसे नाना अलंकार धारण करने वाली एक स्त्री दृष्टिगोचर हुई । उसके पास जाकर उसने पूछा-उस स्त्री ने बताया कि यह राम की नगरी है, जिनका दर्शन अत्यन्त दुर्लभ है । इस पुरुषोत्तम ने मन वांछित द्रव्य देकर सभी दरिद्र मनुष्यों को राजा के समान बना दिया है। ब्राह्मण ने कहा-हे सुन्दरी मैं किस उपाय से राम के दर्शन कर सकता है ? ऐसा कहकर उस ब्राह्मण ने ईधन का भार पृथ्वी पर रख दिया और स्वयं हाथ जोड़ उस स्त्री के पैरो पर गिर पड़ा। दया से आकृष्ट हुई उस सुमाया नाम की यक्षिनी ने ब्राह्मण से कहा कि तूने यह बड़ा साहस किया है। तू इस नगरी की समीपवर्ती भूमि में कैसे आया? यदि भयकर पहरेदार तुझे देख लेते तो तू अवश्य ही नष्ट हो जाता । इस नगरी के तीन द्वारों में तो देवों को भी प्रवेश करना कठिन है । क्योकि वे सदा सिंह हाथी और शार्दूल के समान मुख वाले तेजस्वी, वीर तथा कठोर नियन्त्रण रखने वाले रक्षकों से पूर्ण रहते है । इन रक्षकों के द्वारा डराये हुए मनुष्य निःसन्देह मरण को प्राप्त हो जाते हैं । इनके सिवाय जो वह पूर्वद्वार तथा उसके वाहर समीप ही बने हुये वगुले के पख के समान कान्ति वाले सफेद-सफेद भवन तू देख रहा है, वे मणिमय तोरणो से रमणीय तथा नाना ध्वजाओं की पक्तियो से सुशोभित जिन मन्दिर हैं। उनमे इन्द्रों के द्वारा वन्दनीय अरहन्त भगवान की प्रतिमाएं है। जो मनुष्य सामायिक कर तथा 'अरहन्त तया सिद्धों को नमस्कार हो' इस प्रकार कहता हुआ भाव पूर्वक प्रतिमाओ का स्तवन पढ़ता है तथा निर्ग्रन्थ गुरु का उपदेश पाकर सम्यगदर्शन धारण करता है वही उस पूर्व द्वार में प्रवेश करता है । इसके विपरीत जो मनुष्य प्रतिमाओं को नमस्कार नहीं करता है, वह मारा जाता है । जो मनुष्य अणुब्रत का धारी तथा गुण और शील से अलंकृत होता है राम उसे बड़ी प्रसन्नता से इच्छित वस्तु [४०]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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