________________
कपाय स्पी आताप को दूर करने के लिये आत्म ध्यान को धापा हितकारी है।
॥कर्म भेद ।। ज्ञानवरणकि पांच, दर्शनावरणो नौविधी।
दोय वेदिनी जानि, मोहनी अट्ठावीसी मिली ॥ आय चार परकार, नामकि प्रकृती तिरानौ।
तथा येकसोतीन गोत्र दोय भेद प्रवानो । कही अंतराय को पांच, सबसौ अठताल जानिये ।
____ इम आठ करम अठतालसौ, भिन्न रूप निज मानिये ॥५४॥ मति, श्रुति, अवधि, मनपर्यय, केवल ज्ञान पांच आवरण ज्ञानावणिय पंच भेद है। चक्षु औ अचक्षु, अवधि, केवल, दरस चार, आवरण चार निद्रा निद्रा निद्रा खेद है। प्रचला प्रचला प्रचला यानगृद्ध नौ भेद, दरसनावर्णी, मोह अठाईस भेद है । दान, लाभ, भोग, उपभोग, बल, अंतराय पांच, सब सैतालिस घातिया निषेध है ॥५५॥ मिथ्यात, सममिथ्या, समं प्रकृति मिथ्यात, तीनों दरसन मोह दर्शन को चौभ है । अनंतानुवंधि औ अप्रत्याल्यानि, प्रत्याख्यानि, संज्वलन चारौ क्रोध, मान, मायालोभ है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, नारिनर, पंड, ये पचीस चारीतको छोभे है । अठाईस मोहनि जीवनीको मोहत है, नाश यथा ख्यात संजम क्षायकको शोभे है ॥५६॥
॥सोला कपाय ।। पारि को रेख, थंभ पाथरको, बास वीडा, ऋमिरंग, समचारौ नर्क मांहि ले धरे।। हल लोक, हाड थंभ, मेसिंग, गाड़ीमल, क्रोध, मान, माया, लोभ, तोरजंच में परे। रथलोक, काठयंभ, गोमूतर, देहमल, से कषाय भरे जोव मानुष में औतरे ॥ जलरेखा, वेतदंड, खूरपा, हलदरंग, द्धानत ये चारि भाव सुगं सिद्धो को करे ॥५७॥
साता औ असाता दोय, वेदनि, नरक, पशु,
नर, सुर, अउ, चार, उंच. नीच गोत हैं ।। नाम कि, तीरानु, एकसत एक अघातीया,
आदि तीन अंतराय थीति तीस होत है ।। नाम गोत बीस, मोहकि सत्तरि कोडाकोडि दधि,
आउ कि सागर तेतीस उदोत है ।। वेदनि चौवीस घडि सोल नाम, गोत, पांची,
अंतर मुहरत, विनास ज्ञान जोत है ॥५६॥