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________________ संयोग वियोग रूपी अग्नि से संतप्त संसार-मरुस्थल में जीव अफेला भमण करता है। तन बंधन संघात, वरण, रस, जाति, पंच, संस्थान, संहनन, षट आठ फास है। गति आनुपूर विहेचार, दो विहाय गंध तीन पैसठ्येत्रस, थूल भास है। पर्यापति, थोर, सूभ सूभग, प्रत्येक, जस, सुस्वर, आदर दो-दो, नोरमान स्वास हैं। अपघात परघात, अगुरु लघु, आताप, उदोत, तीर्थकर को वंदी अघनाग है ॥५६॥ वरणादिक बीस, संस्थान संहनन बार बंधन संघात देह आंगोपांग ठार है। अगुरु लघु, आताप, अपघात, परघात, नीरमान, परतेक साधारण सार है। अथीर उद्योत थोर सूभ अशूभ, वासठ पुग्गल विपाकि भौविपाकी भाइचार है। क्षेत्र विपाकी है चार अनुपूरवि अठत्तर वाकी जीव विपाको धारे अव टार है ॥६०॥ केवल दरस ज्ञान आवरण बाकि दोय मिथ्यात समै मिथ्यात निद्रा पांच भानिये । तीनौ चौकरीकि बारै सर्वघाति ईकइस संज्वलन चार नव नोकपाय मानिये ॥ ज्ञानावरण चार दरसनावर्ण तीन अंतराय पाँच सम्यक मिथ्यात ठानीये । देश घातीया छब्बीस बाकि ईकसी अघाति तीनो धानकर्म घात आप शुद्ध जानोये ॥६१।। १०० पाप प्रकृति वर्णन घाति सैतालीस दुःख, नोच, नरक आयु पंच संख्यान, संहनन, वर्ण, रस, मानीये। नर्क पशुगति, अनुपूरवि, फरस आठ, गंध दोय, इन्द्रि चार बूरि चाल ठानीये ।। अधीर, अपर्यापत, सूक्ष्म और साधारण परिघात, थावर अशुभ पर मानीये । दुर्मग, दु.श्चर औ अनादर, आजसरूप, पाप प्रकृती सौ भेद त्याजि धर्म जानीये ॥६२॥ पुण्य प्रकृति वर्णन सूर नर पशु आव साता, उंच भालचाल, सुरनर आनुपूर्वि निरमान खास है। बंधन, संघात, देह. वरण, रसन पंच, तोन अंग, शूभ गंध दोय आठ फास है ।। अगुरु लघु, पंचेंद्रि, संस्थान, संहन, बादर, प्रतेक, थोर पर्यापत जस त्रास है। आताप, उद्यौत, परघात, सुस्वर, सुभघ आदर तीर्थंकर को बंदी अघनाश है ।।६३॥ कर्म वध, उदय, सत्ता वर्णन बंध एकसौ बीस, उदय सो बाईस आवै । सत्ता सौं अठताल पापको सौ कहिलावै ॥ पुण्य प्रकृती अठसठि अठत्तर जीव विपाकी । वासट देह विपाकि खेतभव चवचव बाकी ।। इकईस सर्वघाति प्रकृति देशघाति छब्बीस है। बाकी अघात इकशत भिन्न सिद्ध सिव ईस है ॥६४॥ [१४]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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