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________________ महापुरुष जो कुछ कहते हैं वह शाला है। W www W त्रैलोक्य पटल एक तीन पन सात और नवग्यार तेर जिय । इकतीस सायसु चार दोय इक-इक तीन तीय ॥ तीन-तीन अरु तीन एक इक पटल बताये । इक सौ बार सरब थानक के गाये ॥ सब सात नरक आठौ जुगल त्रय ग्रोवक द्वय उत्तरे। उनचास नरक, त्रेसठ सुरग धन दोन्यौ समकित भरै ॥४३॥ पाताल वर्णन सात नर्क भूमि उनचास पाथडे नीवास इन्द्रकभि उनचास बीचमाहि बोले है । पहले सोमंतक चारि दीसा सेनि ऊनचास चारि वीदिशामे आठतालीस बोले है। आठ दीशा श्रेरिणबद्ध तीनसे अव्यासी भये आगे घट आठ-आठ अंति चार मीले है। सब छयानवैसे चारि जोजन असंख्य धारि दया धर्म करै तोन्है नर्क दुःख टले है ॥४४॥ स्वर्ग वर्णन उरध तोरेसठ पटल कहे आगम में सटहि इन्द्रक विमान बीचि जानीये । पहलो जूगलताके पहले है ऋजुनाम जाके चारि दीसा श्रेणी बासट प्रवानीये ।। चारी दौसे आठ ताल आगै छटै चार-चार अंत रहै चार उंचे चार ठीकठानीये। श्रेणीवद्ध ठंतरसै सोले, जोजन असंख्य सिद्ध बार जोजन पै ध्यान महि आनीये ॥४॥ पैतालीस लाख को है इन्द्रक ऋजुविमान, सर्वारथ सिद्धि अंतंको एक का कहा। चवालीस घटे है तेसठमे, बासठठोर उंचे-उंचे एक-एक केता घटतो लहा॥ सत्तरह हजार नौसे सतसहि योजना है तेईस अधीक भाग इकतीसका गहा । त्रेसठ इन्द्रक नाम सहि जिनधाम वंदौ मन बच काय तीनकि शोभा महा ।।४।। इन्द्र की सेना वर्णन इन्द्रसेना सात, हाथि, घोरे, रथ, प्यादे, बैल, गंधरव, नति सात-सात परकार हैं। आदि चौरासी हजार, आगै षट् दूने-दूने एक कोटि छह लाख अडसठ हजार हैं । येते गज तेते-तेते छह भेद सबके ते, सातूकोट छीयालीस लाख निरधार है। सहस छिहत्तर है और एक अवतार न्योम पुण्य कर्म भोगि मोक्ष को सीधारे हैं ॥४७॥ देव भोग वर्णन दोय सुरगमें काय भोग है, दोय सुरग में स्परस निहार । चार सुरगमें रूप निहारे, चार सुरग में शब्द विचार ॥ [१८१] 46
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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