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________________ महापुरुष जिस मार्ग पर चलते हैं वह मार्ग है । ॥मध्य लोक के अकृत्रिम जिन मन्दिर ॥ पंचमेरु के असी असो वक्षार विराजे, । गजदंतन ५ वीस, तोस कुल पर्वत छाज।। सौसत्तर वैताढय धार, कुरु भूमि दसोत्तर। इक्ष्वाकार पहाड़ चार, चार मानुषोत्तर पर ॥ नदिश्वर बावन रुचकमें चार, चार कुंडल सिखर ।। इम मध्यलोक में चारसे ठावन बंदी विघ्न हर ॥३६।। ॥ नक्षत्र विमान में मन्दिर वर्णन ॥ षट, पांच, तीन, एक, षट,तीन, षट, चार,दो, दो, दो, पांच, एक,एक, चौसट, तिन, लहै । नव, चौ, चौ तीन, तीन, पांच, एकसी, ग्यारह, होय दोय, बत्तीस, पांच तारे तिन लहै । कृत्तिकादी ठाईस के सब दौसे इकताल, ईक ईक के ग्याराग्यारह में सरद है। दोय लाख सतसठ हजार नवसे व्यानु, है चैताले प्रतिबिंव जोनवानी में कहै ॥३६॥ ॥ उर्ध्व लोकांनील चैत्यालय ॥' प्रथम बत्तीस, दूजे अठ्ठावीस, तीज बारें, चौथे आठ, पांचै छट्ट चौलाख विख्यात है ।। सातें आठमें पच्चास नौमे दसमें चालिस, ग्यारे बारें छहजार चार सत सात हैं । आधो एक सत ग्यारे, मध्ये एक सतासत, उरघ इक्यानु नव नऊ जरे जात है ॥ पंच पंचोत्तरें चवयासि लाख सत्यानु हजार तेईस चैत्याले बंदी अघ घात हैं ॥४०॥ सात किरोड. बहत्तर लाख पाताल विष जिन मन्दिर जानो। मध्यहि लोक में चारसे ठावण, व्यंतर ज्योतिक के अधिकानो ।। लाख चौरासि हजार सत्तानवे, तेईस उरघ लोक बखानो ॥ ... ईकी कमे प्रतिभाशत आठ, नमै तिहु जोग त्रिकाल शहानो ॥४१॥ वंदौ आठ किरोड़ लाख छप्पन सत्यानौ, सहस चारसे असि येक जिन मंदिर जानौ ।। नवस पचीस कोटि लाख वेपन, सताईस, बंदी प्रतिमा सवै सहस नौसे अठतालिस ॥ व्यंतर ज्यौतिक अगणित सकल चैत्याले प्रतिमा नमौ ॥ आनंदकार दुःखहार सब फेर नहीं भववन भभौ ॥४२॥ [१८०] Show
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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