SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मानव दु:खों के संघर्ष को सहन कर महान बनता है। वडवानल वर्णन लवणोदधि बीच चारि दिशामाहि चार कूप कहे मृदंग जेम तीन को प्रमान है। पेट और उचे येक-येक लाख जोजन के, नीचे ऊचे मूखाको दस हजार मान है । चारि विदीशा में चार, पेट है उंचे दश हजार येक नीचे उंचे मूखको बखान है। अंतर दीशा हजार, पेट उंचे हैं हजार नीचे उंचे मूख सौ को धन्य जैन ज्ञान है ॥३४॥ मानुषोत्तर पर्वत मानुषोत्तर पर्वत चौराई भूपर एक सहस बाईस । मध्य सातस तेईस जोजन, उपर चार शतक चौबीस ॥ सत्तरहसे इकवीस उचाई, जडा चारस पावरुतीस । ऋजुविमान कहि भांति मिल्यो है जोजन लाख कह्यो जगदीस ॥३५॥ नंदीश्वर द्वीप वर्णन रतिकर रतिकर दधिमुख रतिकर, रतिकर दधिमुख अंजनगिरि दधिमुख रतिकर रतिकर रतिकर वाघमुख रतिकर इकसो सठ कोडि चवरासि लाख जोडि जोजन का चौडा दीप पावन पहाड़ हैं। दिशाचारि अंजन हजार चवरयासि, सोलह दधिमूख योजन हजार दस ऊंचे हैं। रतीकर है बत्तीस योजन हजार एक, लंबे चौडे उंचे सब ढोल के आकार हैं। सव परि जीनभवन वावन विराजत हैं, वर्ष तीन बार देव कर जयजय कार हैं ॥३६॥ अवो लोक मदिर चौसठ लाख असुर जिनमंदिर, लाख चौरासी नाग कुमार । हेमकुमार के लाख बहत्तर छहविधिकेलख छिहत्तर धार । लाख छानवै वात कुमार हैं, पाताल लोक भवन दससार । सात कोटि अरु लाख बहत्तर जिनचत्यालये बंदी सुख कार ॥३७॥ [१७६]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy