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________________ निर्भय वही होगा जो दुख से नहीं घबरायेगा। ॥ लवण समुद्र ॥ मेरू लाख एक जड, उंचा निन्यानौ हजार, चूलिका चालीस बाल अंतर विमान है। नीचे भद्रशाल वन दिशाचारि जिन भवन, पांचसै पै नंदन चैत्याले चार वान है ।। साढे सासठ हजार है सौमनस बन चौ चैत्याले उंचे सहस छत्तीस बखान है ।। तहां बन पांडुक चैत्याले चार सब सोल मन वच काय सेति वंदौ पाप हानि है ॥२६॥ ॥ मेरु वर्णन ॥ मेरु गोल जड तले दस हजार निचेको, भूपै है हजार दस, नंदप लहा है । नौ हजार नौसे चौवन भाग कहै, तहां सौमनस बीयालिससै बहत्तरी रहा है । पांडुक हजार एक, बीचे बारह चूलिका, चारोसै चौरानु बन, पांडुक सर्दहा है ।। सौमनस नंदन है, पांचसे के भद्रशाल, बाईस हजार पूर्व पश्चिम में कहा है ॥३०॥ ॥जोतिप मडल ॥ सातशतक अरु निवे तास पर तारे राजे । ताऊपर दस भान, असीपरचंद बिराजे ॥ चार नखत, बुधचार, तीन परशुक्र बतायो । तीन गुरू कुजतीन, तीन पर शनी ठरायो॥ इम नौसे योजन भूमिते जोतिष चक्र बखानिये । इकसौ दसजोजन गगन में फैलि रह्यो परमानिये ॥३१॥ ॥ अडीच द्विपातील ज्योतिष मडल ॥ इक चन्द इकसूर्य अठासीग्रह, अठाईस नक्षत्र बखान । छयासठ सहस नवसे पिचहत्तर कोडाकोडी तारे जान ।। इकसौ बत्तिस चंद इही विधी ढाई द्वीप मध्ये परवान । सब चैताले प्रतिमा मंडित बंदन करौ जोरि जुगपान ॥३२॥ ॥ चन्द्र सख्या ॥ जंबु द्वीप दोय, लवणांबुधी में चारचंद, धातुखण्ड बारै कालो दधि वीयालीस हैं ।। पुष्कर के भाग दोय इधर बहत्तरि हैं, उधै बारे से चौसठ भाख जगदीस हैं ॥ पुष्कर जलधिसार दोसत, ग्यारै हजार, ____ आगे आगे चौगुने बखाने जगदीस हैं । जेते लाख तेते वले दूने दूने अधिक हैं, सब असंख्य चैताले बंदत मुनीश हैं ॥३३॥
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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