SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिसने पर संवेदन को स्व सवेदन समझा वही सच्चा वीर है। उर्ध्व लोक वर्णन॥ मध्य लोक इक ब्रह्म पांच दुहुमिली भये षट । पूरब पश्चिम दिशा अर्ध करि तीन राजु रट ॥ दक्षिण उत्तर सात गुणो इकइस बखानी । ऊंचा साढे तीन साढ तिहतरी जानी ॥ साढ तिहत्तर विधि यही लोक अन्तसौ ब्रह्मलग। राजू इकसो सैतालिस धरम करै पावै सुमग ॥२४॥ छियालीस चालिस, और चौतीस, अढाई । बाईस, सौले, दस, उनीस साढे बतलाई ॥ साढे सतीस, साढे सोला, साढे सोलह भनो । आगे दो दो हीन अंत ग्यारा राजू गिनी ॥ इस सात नरक आठौ जुगल ऊपरि, सोलैथानमे। राजू तेतालिस तीन से घनाकार है कहि ज्ञानमें ॥२४॥ ॥त्रय वातवलय ॥ तले वात वलै मोटे योजन सहस साठ उंचा एक राजुली साठि सहस धारने । आगे सात पांच चार तीनु सोला जोजन के मध्य पांच चार तीन बारके विचारने ॥ ब्रह्म लोक तीनौ सोल अंतमाहि तीनों बार सीस दोय कोश एक कोशके बिचारनै । तनुवात धनूष पौने सोलेसै ताकै भाग पंद्रह से सिद्धयेक भाग में निहारनै ॥२६॥ ॥ जंबूद्वीप ॥ जंबूद्वीप एक लाख मेरू दस ही हजार भद्रशाल वन दो सहस छीयालीस के ॥ वाको छोयालीस आघोआध दोन्ही विदेही देवारण्यवन ऊनतीससै बाईस के ॥ तीनू नदी पौने चारसत चारोही वक्षार दो हजार आनेही विदेह वच ईस के ।। सतरै सहस सात सत तीन योजन के नमौ चार तीर्थकर स्वामी जगदीश के ॥२७॥ जंबुद्वीप दक्षिण उत्तर लाख योजन को, भाग येकसो निव्वे, येक भरत भाईयो॥ दोय होमवान शैल, चार हेमवत खेत महा होमवान आठ, सौले हरि गाईयो । बत्तीस नीषध है ये 'सठ, उध त्रेसठ बीचि में विदेह भाग चौसठ बताईयो ।। भाग पांचसै छब्बीस, कलाछह, उन्नीस कि अठत्तर चैना लेहै सदासीस नमाईयो ॥२६॥ [१७७] 45
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy