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________________ इन्द्रिय लपटी मानव इह लोक परलोक मे दुःख का भाजन होता है। तीन लोक वर्णन ॥ पूरब पश्चिम सात नर्क तले राजु सात अग, घटा मध्य लोक राजु एक रहा है । ऊंचे बढिगया ब्रह्मलोक राजु पांच भया आगै घटा अंत एक राजु सर दहा है । दक्षिण उत्तर आदि मध्ये अन्त राजु सात ऊंचा चौदे राजु पट दरव से भरा है। असंख्यात परदेश मुरतीक कियो भेष करै धरै हरै कौन स्वयं सिद्ध कहा है ॥१८॥ तीनों लोक तीनौ वात वले वेढे सब ठोर वृक्ष छाल अंड जाल तन चाम देखिये ॥ अधो लोक वेत्रासन मध्य लोक थालिभन उरध मृदंग घन ऐसोहि विशेखिये ।। करकटि धारि पाउौं पसारि नराकार डेढ मूरज आकार अविनासी पेखिये ।। घर मांहि छीको जैसें लोक है अलोक बीच छोकेको आधार यह निराधार लेखिये ॥१६॥ ॥ धन ३४३ ॥ तीनस वेताल राजु धनाकार सबलोक घनोदधि धन तनु वात के आधार है ॥ तामै चौदे चौकूटि त्रसनालि त्रसथावर परै तीन से उनतीस थावर सदा रहै । दक्षिण उत्तर डोरि बीयालीस राजु सब पूरब पश्चिम उनताल को विचार है । राजू अंस विसासौ तेतालीस अधिक है लोक सोस सिद्धन। मेरा नमस्कार है ॥२०॥ उखल में छेक वंशनाल लोक त्रसनालि उंचि चौदे चौरि एक राजु त्रस भरि है ॥ या में त्रस बाहिर थावर आउ बांधिकहु मरण सो आगा गयो त्रस चाल करि है । बाहीर थावर कोय त्रस आवबांधि होय मरण समै कारमाण त्रस रीति धरि है ॥ केवलसमुदघात त्रसरूप तहां जात तीनौ भांति ऊहा त्रस जैन वानि खरी है ॥२१॥ पूर्व पश्चिम तलसात मध्य एक बखानी, पंच स्वर्ग में पांच अंत में एक प्रवानी ॥ चहुं मिलाय चहूं अंश तीन साढे परमानो, दक्षिण उत्तर सातसाढे चौबीस बखानो ॥ ऊंचा चौदे राजू गुण) अधिक तेतालीस तीनसै ॥ यह घनाकार तिहुलोकमें केवल ज्ञानविषे लसै ॥२२॥ पूरब पश्चिम तलै सात, मध्य एके गाई, उभय मिले से आठ अर्ध करि चारि बताई। दक्षिण उत्तर सात गुणौ, अंठाइस राजू, उंचा राजू सात, सतक छयानवै भयाजू ॥ यह अधोलोक का सब कहा घनाकार जिन धरम में । ... मति परो नरक में पाप करी रहो सुमारग परम में ॥२३॥ L१७६] to de deste.
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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