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________________ पन की लालसा से सोनानल पविगत होता है। ॥ उत्कृष्ट आयुष्य वर्णन ॥ मृदु भूमी वारे, खरभू बाईस, जल सात, वात तीन, तर काय को दस हजार है ।। पंखो की बहत्तर सहस, बीयालीस साप, आगदीन तोन, वे इन्द्री वरष वार है ।। ते इन्द्रि दीन उनपचास, चौइंद्री छमास, सोरी सर्प पूरवांग नव आयु धार है ।। मच्छ कोटि पूरव, मनुष्य, पशु तीन पल्ल, सागर तेतीस देव नारको सार है ॥१३॥ ॥अल्प आयुष्य वर्णन ॥ भू जल पावक पौन साधारण पंच भेद, सूक्षम वादर दस परतेक ग्यार है । छ हजार बार बार जामन मरन घार, वेते चौइंद्री अस्सि साठ चालिस धार है ॥ चोवीस पंचेन्द्रि सब छयासठ सहस तीन से छत्तीस सेतीस से तेहत्तर सास है। छत्तीसस पिचासि स्वास अधिक तीजा अंस, नमोनाथ योही सब दूख सौ उधारे है ॥१४॥ ॥८४ लक्ष जाती वर्णन ॥ सात लाख पृथ्वी काय, सात लाख आपकाय, सात लाख तेजकाय, सात लाख वात है। सात लाख नित्य, और इतर सात, साधारण दस लाख प्रत्येक, एके इन्द्रि गात है ।। बेते चव, इंद्रि दोदो, मानूष चौदह लाख, नर्क, स्वर्ग, पशू चार-चार लाख जात है ॥ चवरयासी लाख जाति मो उपरि क्षमा करो, हमहू ने क्षमाकरी वर कीये घात है ॥१५॥ ॥ कुल वर्णन ॥ पृथ्वी काय बीस दोय, जल सात, तेज तीन, वात सात, तर वीस आठ वखानिये ॥ बेते चव इंद्रि सात, आठ नव, खग बार, जलचर, साडे बारे, पशु दस जानिये ॥ सोरि सर्प नव, नारको पचीस, नर चौदे, देवता छबीस लाख कोटि कूल मानीये ।। दोय कोडा कोड माहि आधलाख कोड नाहि सबको निहारकंजु दया भाव आनीये ॥१६॥ ॥आलोका काश वर्णन ॥ अमल अनादि अनंत अकृत अनयित अखंड सब। अचल अजीव अरूप पंचनहि, इक अलोक नभ ।। निराकार अविकार, अनंत प्रदेश विराज । शुद्ध सगुण अवगाह, दसौदिशि अनंत पाजै ।। ज्या मध्ये लोक नभ तीन विधि, अकृत अनमिट अन ईससे । अविचल अनादि अनन्त, सब भाषो श्री आदिश्वरो ॥१७॥
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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