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________________ सपा में माना जानता है। wriwarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrmam प्रतिक्रमण. रात्रियोग ग्र० त्यारा भवत्या सिद्धप्रतिक्राति वीर द्विादशाहताम् ।। प्रतिक्षामेन्मलं योगं योगिभक्त्या भनेत त्यजेत् ॥२७॥ प्रमि.प्रनि वीर नीर्थ । ग योगग त्या योगिभ । अतिचार वन्दनादि नियेत जनाधियय विशुद्धयर्थ सर्वत्र प्रिय भक्तिकाः ॥२८॥ ममा. निपिद्धिका स्थानाची व शरीराची क्रिया समयी सामान्यों मते- सिद्धयोगि शांति । सिद्धांतवदि साधूना-सिद्ध श्रुत योगि शान्ति भक्तयः संत्रांतोत्तर योगिनासिद्ध चारित्र योग शांति भक्तयः । आचार्यस्य-सिद्धयोगाचार्यशांति भक्तयः सद्धांताचार्यस्य सिद्धश्रुतयोगाचार्य शांति भक्तयः ।। उत्तरयोगिनामाचार्याणां सिद्धचारित्र योगाचार्य शांति भक्तयः उत्तर योगिनः सिद्धाताचार्यस्य मिद्धभुतयोगाचार्य शांति भक्तयः ।। उत्तरयोगिनां सिद्ध चारित्र योगि शांति भक्तयः । अनंतरोक्ता अप्टोक्रियाः शरीररय निषधास्थानस्य च ॥२६॥ पानिक चातुर्मासिक वगैरे प्रतिक्रमणे पाक्षिक चातुर्मासिक सांवत्सरिक प्रतिक्रमणे सिद्ध चारित्र प्रतिक्रमण निष्ठित फरण चनुविशति तोर्यकर भक्तिचारित्रा लोचना गुरु भक्तयो बृहदा लोचन गुरुभक्तिलंधीयप्याचार्यभक्तिश्च फरणीयाः ॥३०॥ पा.चा मा.मि चा प्र चनु.चा आलो.गुरु यो आ. - जाप्यकरण कायोत्सर्ग पुर्वक - अष्टशतं देवमिर कल्येधं पाक्षिकं च त्रीणि शतानि ।। उच्छ्वासाः फर्तव्या नियमांते अप्रमत्तेन ॥३१॥ ई.प्रा. गती पाभिके उ.जा प्रत्येकभक्ती उ.जाप्य नमोकार 100 ५3D%300-800 [१]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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