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________________ संसार, संयोग-वियोग, सुख-दुःख और हर्ष-विपाद का संगम स्थान है। wwwwwwwwwwwww अथ निर्वाण भक्तिः नि विबुधपति खगपति नरपति धनदोरग भूतयक्षयपति महितम् । अतुल सुख विमल निरुपम शिवमचलमनामयं संप्राप्तम् ॥१॥ कल्याणः संस्तोष्ये पंचभिरनघं त्रिलोक परम गुरुम् । भव्य जन तुष्टि जननैर्दुरवापैः सन्मति भक्त्या ॥२॥ गर्भ कल्याणिक वर्णन आषाढ़ सु सित षष्ठयां हस्तोत्तर मध्य माश्रिते शशिनि । आयातः स्वर्गसुखं भुक्त्वा पुष्पोत्तराधीशः ॥३॥ सिद्धार्थ नृपति तनयो भारतवास्ये विदेह कुडपुरे । देव्या प्रियकारिण्यां सुस्वप्ना-संदर्य विभुः ॥४॥ जन्म कल्याणिक वर्णन चैत्र सित पक्षफाल्गुनि शशांक योगे दिने त्रयोदश्याम् । जज्ञे स्वोच्चस्थेषु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ॥५॥ हस्ताश्रिते शशांके चैत्रज्योत्स्ने चतुर्दशी दिवसे । पूर्वाण्हे रत्न घटै विवुधेन्द्राश्चवरुरभिषेकम् ॥६॥ . दीक्षा कल्याणिक वणन भुक्त्वा कुमारकाले त्रिंशद्वर्षाण्यनंतगुणराशिः। अमरोपनीत भोगान्सहसा भिनि बोधि तोन्येच ः ॥७॥ नानाविध रूपचितां विचित्रकूटोच्छिता मणिविभूषाम् । चंद्र प्रभाख्य शिविका माला पुराद्विनः क्रान्तः ॥८॥ मार्गशिर कृष्णदशमी हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते सोमे । षष्टेन त्वपराह्न भक्तन जिनः प्रवनाज ॥६॥ केवल ज्ञान कल्याणिकाची प्राप्ति ग्रामपुर खेट कर्वटमटंब घोषाकारा प्रविजहार । उग्रस्तपोविधान दश वर्षाण्य मर पूज्यः ॥१०॥ [२]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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