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पूज्य मुनिराज श्री को अपनी कलम मे
स्व-परिचय
जन्म-पोप कृष्णा (राजस्थान को अपेक्षा माघ कृष्णा) १३ दिन शनिवार ४६ घडी ५ पल शक सम्बत् १८०५ वि० सम्बन् १६४० पूर्वापाढा नक्षत्र रात्रौ ।।
(स्थान)-नाद गाव-(पिता का नाम) श्री नथमल जी चोथमल जो पहाडे मोलवाल जाती दिगम्बर जैन धर्म परायण की भार्या सितावाई के पुत्र तीन-नेवलनन्त, खुशालचन्द, लालचन्द (इन) मे से द्वितीय का विवाह १॥ साल के लिए हुआ । शके १८२५ ज्येष्ठ शुक्ल नवमी शील व्रत धारण करे अतिचार सहित-विद्याभ्यास मराठी छठी क्लास तक - व्यापार वश पढ़ने के साधन न होने से कुछ मामाजिक कामो में भाग विताते हुए श्री निर्वाण क्षेत्रो के दर्शन सर्वत्र होकर, मन को शातता बढ़ने पर आषाढ़ शुक्ल १० सं० २४४८ को ऐल्लक पन्नालाल जी महागज से इमरी प्रतिमा धारण की। फिर भाद्रपद शुक्ला ५ को पांचवी प्रतिमा (के) बन लिए । नतर स० २४४६ को श्री जी के सम्मुख श्रावण कृष्णा अप्टमी को मातवी ब्रह्मचर्य प्रतिमा धारण करी । सम्वत् २४५० पोप शुक्ला ११ को नवमी प्रतिमा धारण की। माघ शुक्ला २ श्री मुनिराज शान्ति सागर जी के कुर्दुवाडी जाके दर्शन किये और माघ कृष्णा सप्तमी को दशवी प्रतिमा के व्रत लिये। नंतर कुभोज के निकट बाहुबनि डोगर पर फाल्गुन शुक्ला सप्तमी सम्वत् २४५० को मुनिराज के चरणों में क्षल्लक व्रत ग्यारहवी प्रतिमा धारण किये । चातुर्मास ममडोली मे हुआ । आश्वनी शक्ला ११ बुधवार २४५० श्रवण नक्षत्र पर आचार्य महागज १०८ श्री शान्ति मागर जी के उपदेश से केशलोच कर ऐल्लक व्रत धारण किये-नाम चन्द्रमागर। मिनी मार्गशीर्ष शुक्ल १५ सोमवार २४५६ मग नक्षत्र मकर लग्ने मोनागिरि क्षेत्र पर दिन के १० बजे चन्द्रसागर ने मुनि दीक्षा महावत धारण किये आचार्य शानि नागर जी दीक्षा गुरु के कर कमलों में।
॥ शुभ भवतु ॥