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________________ इन्द्रिय लंपटी इहपर लोक में दुःख का भाजन बनता है। कुंथु सिद्धालयस्थं, श्रमणपतिमर त्यक्त भोगेषु चक्रम् । मल्लि विख्यातगोत्रं, खचरगणनुतं सुअतं सौख्यराशिम् ।। देवेन्द्राय॑ नमीशं हरिकुल तिलकं, नेमिचंद्र भवान्तम् । पार्श्व नागेन्द्र वन्ध, शरणमहमितो वर्द्ध मानं च भक्त्या ॥५॥ - कायोत्सर्ग आलोचना --- इच्छामि भंते ! चउवीसतित्थयर भत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं । पञ्चमहाकल्लाण संपण्णाणं अळमहापाडिहेरसहियाणं, चउतीस अतिसय विसेस संजुत्तणं, बत्तीसदेविदमणिमउडमत्थयमहियाणं, बलदेव वासुदेव चक्कहर रिसि मुणि जइअणगारोव गूढाणं, थुइसयसहस्सणिलयाणं, उसहाइ-वीरपछिम मंगल महापुरिसाणं, णिच्च कालं अंचेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमंसामि, दुक्खक्खो , कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिण गुण संपत्ति होउ मझं। ANAMAMINMAMNNIMO - इति तीर्थकर भक्ति समाप्त - NMMANMAMNNAMMA WwwwwwVVVVVVV GE अथ शान्ति भविन: 240 श्री पादपूज्य स्वामी याना नेत्र बिंदु वगैरे रोग झाले होते त्यांचे नाशाप्रत्यर्थ शान्तिनाथ जिनाचे स्तोत्र रचिले ते याप्रमाणे - न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवत्पादद्वयं ते प्रजाः। हेतुस्तत्र विचित्र दुःख निचयः संसार घोरार्णवः ॥ अत्यन्त स्फुरदुनरश्मि निकरव्याकीर्ण भूमंडलो। प्रमः कारयतीन्दु पाद सलिलच्छायानुरागं रविः ॥१॥ क्रुद्धाशीविषदष्टदुर्जयविष ज्वाला वली विक्रमो। विद्याभेषज मंत्र तोय हवनर्याति प्रशॉति यथा ।। तद्वते चरणारुणॉबुज युगस्तोत्रोन्मुखानां नृणाम् । विघ्नाः कायविनायकाश्चसहसा शाम्यन्त्यहो विस्मयः ॥ २ ॥ [७७] 20
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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