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हिता विषमता की गहरी अंधियारी को उत्पन्न करती है। SC-श्रीयुत पंडित महाचन्द्र जी कृत-21 er सामायिक भाषा ॐ
१-अथ प्रथम प्रतिकमण कर्म काल अनंत घम्यो जग में सहिये दुख भारी, जन्ममरण नित किये पापको हअधिकारी । कोटि भवांतरमाहि मिलन दुर्लभ सामायक, धन्य आज मै भयो योग मिलियो सुखदायक ।। हे सर्वज्ञ जिनेश किये जे पाप जु मैं अब, ते सब मनबचकाय योग की गुप्तिविना लभ । मापसमीप हजूरमाहि मैं खड़ो खड़ो सब, दोष कहूं सो सुनो करो नठ दुःख देहि जब ।२। क्रोधमानमदलोभमोह माया वशि प्राणी, दुःख सहित जे किये क्या तिनको नहिं आणी। विना प्रयोजन एकेंद्रिय बि ति चउ पर्चेद्रिय, आपप्रसादहि मिटै दोष जोलग्यो मोहि जिय ॥३॥ आपस मैं इक ठौर थापि करि जे दुख दीने, पेलि दिये पगतले दाबिकर प्राण हरीने । आप जगत के जीव जिते तिन सबके नायक, अरज करूं मैं सुनो दोष मेटो दुखदायक ।। अंजन आदिक चोर महाघनघोर पापमय, तिनके जे अपराध भये ते क्षमा क्षमा किय । मेरे जे अब दोष भये ते क्षमो दयानिधि, यह पडिकोणो कियो आदि षटकर्ममाहि विधि ॥५॥
इति प्रतिक्रमण कर्म ।
२-अथ द्वितीय प्रत्याख्यान कर्म जो प्रमादवशि होय विराधे जीव घनेरे, तिनको जो अपराध भयो मेरे अघ ढेरे। सो सब झूठो होउ जगतपति के परसाद, जा प्रसादत मिल सर्व सुख दुःख न लापं ।। मैं पापी निर्लज्ज दयाकरि हीन महाशठ, किये पाप अघढेर पापमति होय चित्त दुठ। निंदू हूं मैं बारबार निज जियको गरहूं, सबविधि धर्म उपाय पाय फिर पापहि करहूं ७॥ दुर्लभ है नरजन्म तथा श्रावककुल भारी, सतसंगति संयोग धर्म जिन श्रद्धा धारी। जिनवचनामृत धार समावर्ते जिनवाणी, तोहू जीव संघारे पिक धिक धिक हम नाणी ।। इंद्रिय लंपट होय खोय निजज्ञान जमा सब, अज्ञानीनिमि कर तिसी विधिहिंसक अब । गमनागमन करतो जीव विराधे भोले, ते सब दोष किये निन्दू अब मन वच तोले ।। आलोचन विधि थकी दोष लागे जु घनेरे, ते सब दोष विनाश होउ तुम त जिन मेरे। बारबार इस भांति मोहमद दोष कुटिलता, ईर्षादिक ते भये निदिये जे भयभीता ॥१०॥
इति प्रत्याख्यान कर्म ॥२॥
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