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राग पोप मान गापा भाविकागे कामयाग करना ही परम आँगा।
३-अथ तृतीय सामायिक कर्म सब जीवन में मेरे समताभाव जग्यो है, सब जिय मोसम रामता रापो भाव लग्यो है। आतंरीद्र द्वयच्यान छांनि फन्हूिं मामायिक, मंयम मो करशन होय यहभाववधायक ॥११॥ पृथ्वोजल अग अग्निवायु चउकाय बनस्पति,पंचाह थावरमाहि तपायमजीववस जित । बेइंद्रियतिय चउ पंचद्रियमाहि जीवगव, तिनत क्षमाकराऊ मुसपर क्षमाकरो अब ॥१२॥ इस अवसरमें मेरे मन ममफंचन अर तण, महल ममान समानत्र अमित्र हिमम गण। जामनमरण समान जानिाम नमना कोनी, मामायिकका काल जितं यह भावनवोनी ॥१३॥ मेरोहै इक आनम तामै ममन जु कौनो, और गो मम भिन्न जानि समनारमनीनी । मातपिता मुतबंध मित्रनिय आदिगो या. मानन्यारंजानि जथाग्य र कर्यो गह ॥१४॥ मैं अनादि जगजालमाहिमाम प न जाण्यो, पद्रिय दे आदि जनुकी प्राण हराण्यो । ते अब जीवसमूह मुनो मेगे यहारजी, भवभवको अपगध समा कोज्यों कर मरजी ॥१५॥
-farii for Til : t.
४-अथ चतुर्थ ग्लवन कर्म नमो ऋषभजिनदेव अजिजिनजीतकर्मको । संभव भवदुगहरणकरणअभिनंद शर्मको। सुमतिसुमति दातार तार भसिधु पारकर । पाप्रभपद्माभ मानिभव भौतिप्रीति धर ।१६ श्रीसुपाश्वं कृतपाश नाश भव जास शुद्धपार । श्रीचंद्रप्रभ चंद्रकातिसम देह कांतिधर । पुष्पदंत दमिदोषकोश भविपोप गेपहर । शीतन गीतल करणहरण भवताप दोपहर ।१७ श्रेयरूप जिनश्रेय धेय नित मेय भव्यजन । वासुपूज्य शतपूज्य वासवादिक भवभयहन । विमल विमलमतिदेनअंतगत हैअनंनजिन । धर्मशमंशिवकरणशांतिजिनशांतिविधायिन ।१८ कुंथुकुथुमुख जोवपालअग्नाथजाल हर । मल्लिमल्लसम मोहमल्लमारण प्रचार घर । मुनिसुनतवतकरण नमतसुरसंघहिं नमिजिन । नेमिनाजिननेमिधर्मरथमाहि जानधन १६ पार्श्वनाथ जिन पार्श्वउपलसम मोक्ष रमापति । वद्ध मानजिन नवम भवदुःख कर्मकृत। या विधि में जिन संघरूप चउवीस संख्याधर । स्तनमूहूं वारवार वंदू शिव सुखकर ।२०
-इति ननु स्नयन गर्म ॥ ४ ॥-- [५२]