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________________ कषाय रूपो विषम प्रह जीवों को स्थिर नहीं रहने देता। . . इसलिए आचार्य विद्यानदि ने अष्ट सहस्री में स्पष्टतः कहा है कि "मोक्षस्यापि परम पुण्यातिशय-चारित्र विशेपात्मक पौरुषाभ्यामेव सभवात्" मोक्षकार्य भी परम पुण्य अतिशय रूप चारित्र विशेष के कारण ही सिद्ध होता है। वह पौरुष ही उसके लिए निमित्त है। पुण्यातिशय आदि सर्व सर्वथा कर्म रूप है तो वह मोक्षकार्य मे कारण क्यो माना गया है। उपादान न होने पर भी वह निमित्त या सहकारी कारण अवश्य है। कुछ लोग कहते है कि अन्य द्रव्य अन्य द्रव्य के परिणमन में निमित्त वन नही सकता है। परन्तु आचार्य उमा स्वामी ने एक द्रव्य दूसरे द्रव्य पर क्या उपकार करता है, इसका विवेचन तत्वार्थ सूत्र के ५ वे अध्याय में किया है। जब आचार्य स्वयं मानते है कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य पर उपकार करता है, अपकार करता है तो आपको स्वकपोल कल्पना का क्या अर्थ है। मद्य के द्वारा मुर्छा आती है। काटा चुभने से वेदना होती है, कर्मों के द्वारा संसार परिभ्रमण होता है, यह जब हम प्रत्यक्ष में देखते है तो उसका निषेध क्यों किया जाता है। ___ शायद यह इसलिए कहा जा रहा है कि सर्व पदार्थों की परिणति नियत देश, नियत काल में अपने आप होती है, उसमें कर्म कुछ ही परिवर्तन नही करता है। यह कहना सत्य नहीं है। पदार्थों की परिणति नियत भी होतो है, अनियत भी होती है। कोई निमित्त कारण के उपस्थित होने पर कर्म के उदय में भी अनियत व्यवस्था आती है। इसे सिद्धान्त को जानने वालो ने स्वीकार किया है । तप से निर्जरा होती है, वह निर्जरा सविपाक भी होती है, अविपाक की होती है, इसका विचार करे । अकाल मरण क्यों ? आयुवभाग में भुज्यमान आयु को यह जीव वाचता है तो वीच में ही आयु खतम होने का कोई कारण नहीं है, उसे नियत पूर्ण आयु को भोग कर ही जीवन समाप्त करना चाहिए, परन्तु लोक मे अकाल मरण भी देखा जाता है। उदाहरण के लिए किसी जीव ने ८० वर्ष की आयु का बध किया, बीच में किसी सभा से लौटते समय ३० वर्ष की अवस्था में उसका मोटर से एक्सीडेन्ट हुमा। मरण हुआ, अर्थात् यह अकाल मरण है, सकाल मरण नही है। सकाल मरण तो आयु की स्थिति पूर्ण होने पर ही हो सकता था। बीच में ही आकस्मिक कारण से हुआ, इसलिये इस अकाल मरण कहते है, यह सभव होता है। किसी ने घड़ी को चावी दी, उस चाबी के निमित्त से वह २४ घण्टे तक वह घडी निर्धास्त होकर चलेगी, परन्तु स्प्रिंग में बिगाड़ हो जाय तो वह घडी बीच में कुछ घण्टो में ही बद भी हो सकती है । उस बिगाड़ के निमित्त से उसका बीच में बंद होना संभव हो सका। दूसरा उदाहरण लीजिए:-एक घडा पानी किसी को देकर यह कहा कि २४ घटे के लिए यह पानी आपके सर्व कार्यों के लिये पर्याप्त है । बीच में ही इधर उधर जाते हुए वह घड़ा लुढ़क गया तो एक दम पानी समाप्त हो सकता है या नही ? विचार करे। |३२)
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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